Sunday, 11 November 2018
Sunday, 21 October 2018
Thursday, 18 October 2018
मिथिला में ब्राह्मणबाद पर बबाल
नेपालीय मिथिला क्षेत्र कें महोत्तरी में भँ रहल मैथिली कार्यक्रम ‘अडहूल’ पर लिखल गेल हमर ई फरक मत थिक । अई कार्यक्रम में एक–दुइगोटा बाहेक झाडि एकल जाति (ब्राह्मणवादी) सभहक सहभागिता आ दबादबा देख हम प्रतिक्रिया लिखलौए । सामाजिक संजाल सकारात्मक बहसकें निक मैदान थिक, एकरा अहि रुपेण प्रयोग होमाक चाहीं से हमर मान्यता रहलैए । तार्किक बहस के पक्षपाती छी, तेँ स–प्रमाण तर्कसहित प्रस्तुत भेलौए । प्रवुद्ध आ विद्वान पाठक वर्ग अपने सभ न्यायाधिश छी । न्यायके पक्षमे खाड होयब से अपेक्षा । हमर फरक मत सभ गोटा के निमने लगई से त नहि भँ सकैत अछि । ऐतह, हमर स्टेटस पर आयल विचार बिना सम्पादन कएने रखने छी । अपने सभहक प्रतिक्रिया कें लेल ललायित सदखनि रहब । मिथिला सुहनगर बनौत से मात्र हमर पवित्र मकसद अछि । एकरा अहि रुप सँ लेबाक सभगोटा के हमर विन्तिभाव सेहो अछि !
कोनो पुस्तकमें हम पढने रही: भाषा/साहित्य जाति, लिंग, धर्म आ सम्प्रदाय सँ ऊपर होयत छैक । ओहिमें नहि स्थानक भेद रहैत छहि, नहि कालक भेद , नहि भाषाक भेद, नहि मानवक भेद । ओहिमें नहि कोनो शर्मा होएत छहि, नहि वर्मा होएत छहि, नहि झा होएत छहि, नहि यादव होएत छहि, नहि कियो दलित होएत छहि, न किओ मुस्लिम होएत छहि...... मुदा रोटी–पानीकें जुगाड मे रहल किछु लोक आ कमाउ कमिटि कें ईंचार्ज किछु गोटा किएक मैथिली भाषाकें कमजोर आ बाँटबखराकें प्रयासमें लागल छथि ? तई, एक गोटा ‘पाग बनेबाक काजमें’ जुटल छथि आ दोसर गोटा गैरजिम्मेवारीपूर्वक जातिय प्रचारक विडा उठेने छथि । प्रचारमें आयल लोक सभ में किछु गोटा माक्र्सवादी सेहो छथि । ओ भाषाकें विकास कम आ व्यक्तिगत स्वार्थ आ सदैव हरिअरीकें जोगाडमें बेसी रहल पुष्टि बहुत पहिले भँ चुकल अछि । ओ सब कहैत छथि, जातिके बाते नहि वर्गक बात करु । मुदा हुनका सबहक वर्ग माने भाषाक नामपर जातिबाद मात्र देखमामें आयल अछि । तें हरेक नाम सँ पहिले आब मिथिलामें जातिक पत्ता कथित साहित्यकार सब करैय लागल छथि । अपवादकें रुपमें पर्दा आगा एक आ दू गोटा गएर–जातिके देखाकें ओ सब ओहे लेखक/साहित्यकार/कलाकारके सही मानैत छथि, जे हुनका लोकन्हिकें अपन जातिकें रहैत छथि । चेला आ चेलवाके चेला जे काम लगैय बला होए, कुलगोत्र बढाबय बला होए, ओकरे चयन होएत छहि । दुर्भाग्य जे, प्रगतिशिल लोक सभ जातिशील जका काँज कए रहल छथि । पता नहि, मैथिलीकें अग्रज विद्वान द्वय डा।महेन्द्रनारायण राम आ श्री परमेश्वर कापडि जी द्विज सबहक भ्रमजाल आ नेपालक नटवरलाल सबकें चंगूलमें कोनाकें फसिं जाएत छन्हि ?
हमर ई स्टेटस पढिकें मैथिली भाषाकें सक्रिय अभियानी एवं सर्जक विष्णुकुमार मण्डल लिखलथि :
अपनेक कथन काटबाक अवस्था नहि, मुदा मिथिला त मिथिला छियै एकर संरक्षण आवश्यक । ताहि वास्ते एहि सत्य के उजागर करैत उपर लिखल गेल अप्पन भूमि बन्हकी राखि हरियरी चर, मे व्यस्त कथित विद्वान लोकनि के मार्गदर्शन करब आवश्यक । मिथिला आ मैथिली ककरो बपौती नहि, हमरा सभक छी, एकर रक्षा हमरा सभक दायित्व छी, एहि सकारात्मक भावना दिस ध्यान केन्द्रित होयब अपरिहार्य ।
मनोज झा ‘मुक्ति’के प्रश्न रहनि:
दोसरो कोनो आयोजन होइ, जाइमें ई आरोप नइ लगाओल जासकय । मुदा, करत के ?
मात्र आ मात्र फण्ड समाप्त करवाकलेल कार्यक्रम आयोजना करबाक संस्कार रहल अपना ओतऽ अपन नितान्त व्यक्तिगत खर्चपर ूचनमाू क सफल आयोजन पश्चात ूअडहूलूके आयोजन कएने विभा झा बधाईयक पात्र छथि ।एकटा व्यक्तिगत खर्चपर बेदाग कार्यक्रम आयोजना कएल जाय भाइ साहेब । जँ भऽसकय त हौसला देलजाय, मनोबल तोडवाक काज कतौसँ नइ होएवाक चाही ।
सिरहामें रहिकें मैथिली आ नेपाली गीत, साहित्यकें श्रीवृद्धिमें सक्रिय अर्जुनप्रसाद गुप्ता लिखलहिन:
भाषाक नामपर राजनीति कयनाई एवं व्यक्तिगत महत्वाकाँक्षी बननाई अपराध सरह अछि । जनमभूमिक दलाली कयनाई अपन माईसँ बइमानी कयनाई अछि । किछु अभिशापी पापीसब भाषा साहित्य आ जनमभूमिके बहाना बनाक अपन महत्वाकांक्षा पुरा करमे व्यस्त अछि । फेरो उहे इमान्दार कहलाबैत अछि उहे सम्मानित भ रहल य । गुलामी आ पिच्छलगुवा त वास्तविक सन्तानपर अन्याय क रहल य ।शोषक ओकरे चाबसी द रहल य ।
मनोज झाकें प्रति हमर प्रश्न रहनि:
कोनो कार्यक्रमक आयोजन आ प्रचार दूइटा पृथ्थक बात थिक । कार्यक्रमक आयोजनकें ई अर्थ किन्नौह नहि जे एकल जातिय भाषा/शैली/लवज/व्यक्ति/परम्पराकें सर्वव्यापीकरण करी । एकटा व्यक्तिगत खर्चपर बेदाग(?) कार्यक्रमक आयोजनाकें इहो अर्थ नहि जे ओहिमें मात्र आ मात्र सिन्डिकेटधारी आ कार्टेलिङबादीकें अपन मनमौजी करबाक छुट होए । भाय, राजधानीमें पिछला मईमें भेल ‘चनमा’ केर बात अपने कयलौए या आन जगहक ‘चनमा’ केर बात ? राजधानी बला ‘चनमा’ मे ‘कथित पागक प्रचार’ नहि होमाक बात सकारात्मक छल । मुदा कार्यक्रमक वक्ताक प्रस्तुति आ अहिके बारेमें सार्वजनिक भेल ‘न्युज’ त मैथिलीकें तोडबाक पुष्टि कएलक अछि । ओहि कार्यक्रममें नेपाली कांग्रेसके नेता/सांसद प्रदिप गिरी आ वामपन्थी नेता रामचन्द्र झाकें टिप्पणी पर अपनेकें प्रतिक्रिया जानए लेल इच्छुक छी । गिरी जी कहने रहथि –‘मैथिली भाषा सिर्फ ब्राह्मण–कायस्थ में बोलल जाएत अछि’ आ झा जी के कथन रहन्हि जे ‘ब्राह्मण–कायस्थक बोली मैथिली भाषाक मानक थिक ।’ ‘मैथिली जिन्दाबाद’ कें एकटा गोटा संचालक पूर्व राष्ट्रपति रामबरण यादव(राजधानी बला ‘चनमा’ कार्यक्रमक विशिष्ट अतिथि रहन्हि) कें ‘मैथिली भाषाक ज्ञान नहि होमए वला व्यक्ति’ कें रुपमें ओ अपना अनलाईनमें चित्रण कएने रहैक ।.....‘चनमा’के बाद ‘मैथिली मचान’क आयोजना राजधानीमें भेल, ओहूमें प्रदिप जी आ रामचन्द्र जीकें परिभाषामें समटल मैथिली बजैबला लोकन्हि सबहक दबदबा रहैक (ओहूठाम एक गोटा कथित ‘नचनिया’ आ एक गोटा कथित ‘बजनिया’ में वर्चस्पकें लडाई छताछुल्ल भेल रहैक) । इ दूईटा घटनाक्रमक बाद ‘अडहूल’ कें आयोजन भँ रहल अछि । इ सकारात्मक होइतो, अहिकें प्रचारमें (बिजय दत्त ‘मणि’जी आगन्तुक अतिथिगणक हेतु शिर पर ‘पाग’ धमाधम निर्माण भँ रहल बात लिखलथि) आ सहभागी सभहक सूचीं(सार्वजनिकिकरण धिरेन्द्र झाकें फेसबुक बाल पर भेल,जहिमें गएर–मैथिल(?)कें उपस्थिति नगन्य छहि) देख चिन्ता मात्र जाहेर कएलौह । मिथिला आ मैथिलीमें अगुवा सबहक कमी छहिए नहि, त हमरा सनक पछुवा केर कोन काज ? ओना जे पात्र सभ कार्यक्रममें सहभागी अछि ओ सभ ‘दूधक’ धुअल विल्कूल नहि छथि । कियो कमाउँ कमिटीकें इन्चार्ज छथि, कियो मैथिलीकें नाम पर ‘दूकानदारी’ में लागल छथि.....। प्राज्ञसभामें उपकूलपति बनबाक लेल ‘ढेङ्हुन छाबा’ एक कएनिहार, माक्र्सबादक शिक्षा देनिहार, जातिय महिमामण्डित कएनिहार आ ............देख चिन्ता भेल । मनोज जी, मैथिलीमें शुद्धिकरणक आवश्यकता अछि, हमर अभियान मात्र अहि बास्ते अछि । जाहाधरि कार्यक्रमक आयोजनाकें बात अछि, तयारी भँ रहल छहि, सामग्री सभ जुटा रहल छी । मिथिला आ मैथिलीकें नामपर ठगफुसियाहि कएनिहार सभहक जन्मकुण्ली तयार भँ चुकल अछि । किछु आर दिन नटवरलाल सभहक लुटामारी चलए दियौं । अखन हमरा ‘वाचडग’ के भूमिकामें मात्र रह दिए, सुझाबक लेल धन्यवाद, भाय ।
एकरबाद जीवेश झा जी अपन प्रतिक्रिया अंग्रेजीमे देलथि:
Sir, these people r constipated ones. We have seen their fake bravery from the very long. So called High castes, idiots! They r narcissists...if you question their attitude, they would term you anti-Mithila. This is the irony. They favor Mithila over Madhesh. Its their constipated thoughts which divided us along the lines of castes and creeds and we have got a small province of 8 districts against 20. They r non-sense. Mithila is a tool for them to milk money. They r fools.
जीवेश झा पर हमर प्रतिक्रिया:
Jee! It's bitter reality of Mithila and Maithili even Madhes and Madhesi too. Your big little but huge messable analysis are echoes of all Maithili People . Thanks a lot to participations on good innociation of Mithila .
हमर प्रतिक्रिया:
जहि कार्यक्रममें विद्वान वक्ता लोकन्हि ‘मिथिलामें सुच्चा मैथिली भाषी ब्राह्मण–कायस्थ मात्र होमाक प्रचार कएने रहिन्ह’ ओकरा एकटा गोटा मैथिलीकें उप–प्राध्यापक ‘सफल’ कहि रहल छथि....... मैथिलीकें कथित अभियानी सभसँ भरलपुरल ओहि कार्यक्रमक सभागृहमें किनको मूँह सँ अहिकें विरोधमें आबाज नहि निकल रहैय । आ आजुधरि ओ सभ मौने छथि । यौ सरकार, मैथिलीकें दूर्गति ओहिना नहि भेल छहि ?
मनोज झा जी कें प्रतिक्रिया:
हम एखनो कहि रहलछी जे कार्यक्रम भरपुर सफल रहल छल । ओइमे कोनो एहि प्रकारके बात नइ कहलगेल छलै । हँ, मैथिल कहलासँ मात्र किछुजातिके कहब जे बात किछु कथित विद्वान जे कहैत छथि ताहिके फरिछिएवाक प्रयास वक्तासब कएने रहथि ।हमरा इ नीकजकाँ बुझल अछि जे मैथिली कोनो जाति विशेषके जिमदारी नै छै । हँ, अपना-अपना स्वार्थ सिद्धीकलेल अपने हिंसावे व्याख्या कएनिहारके कमी नै छै एहि संसारमे से आहाँ,हमरा आ बहुतोके बुझल छन्हि ।
हमर प्रतिक्रिया :
‘अडहुल’ कें नाम पर ‘मैथिली साहित्य’ कार्यक्रम नहि, खासजाति विशेषक ‘अनुष्ठान’क तयारी भँ रहल बात निचा देल गेल तस्बिर सेहो पुष्टि करैत छहि । पहुना सभकें ‘पाग’ लगेबाक तयारी जोड–सोड सँ चलि रहल छहि । ‘पाग’ मिथिलामें सभकें पहिरन त नहि छी । मैथिली हमरों सरोकारक विषय थिक, तें गलतकें गलत कहनाई अपराध नहि थिक ।
भौतिक शास्त्री एवं वैज्ञानिक विन्देश्वर गोइत जीकें प्रतिक्रिया :
कभी कभी हमको लगता है कि हमलोग कि हमलोग जो मुद्दा नही है उसको मुद्दा बना लेते है वह भी फेस बुक मे।हिन्दु धर्म का अभिसाप जाति प्रथा है।इसके बिरोध मे भगवान बुद्ध ने लडाइ लडी।बुद्ध धर्म को अनेक षडयन्त्र करके भारत से खदेर दिया गया।कुमारिल जो आदि शंकरार्य के सबसे नजदिक थे ने बुद्ध धर्म के बारे के बारे मे झूठ, भ्रामक एबं घिनौना कुप्रचार किया। इसके प्राश्चित स्वरुप कुमारील ने शंकराचार्य के सामने उनके रोकने के बाबजुद आत्मदाह कर लिया।मिथिला के लोग ज्यादा कास्ट कनसस है यह तो जग जाहिर है।अतस् जो पाग आदि९पाग मैथिल ब्राह्मण का डरेस है० का प्रचार करते है उनको अपना काम करने दें।हमलोग पगडी, गमछा का प्रचार करे।दलितों के साथ सदियोंसे जो छुवाछुत जैसा घृणित ब्यबहार किया जा रहा हढ उसके बिरोध मे समाजिक अभियान चलाबे।बहुत सारे मुद्दे है उस मुद्दा पर बहस हों।
हमर प्रतिक्रिया :–
मिथिलामें ढोलहाराकें काज सभ गोटे बुझनेहि छि । ओ सभ टोल–टोलमें ढोल पिटकें सूचना या हकार दैति छहि । मुदा ढोलहरें सुचना गलति सम्प्रेषित करत त, सुधारक अपरिहार्यता निश्चित होएत छहि । सन्दर्भस् ‘अडहुल’ के चलि अछि । अपनाकें मिथिलाकें एकटा मात्र सुच्चा९रु० मिथिला अभियानी(?) के दाबी कएनिहारक ‘फेसबुक वाल’ मे लिखल सामग्रीकें ‘सट स्क्रिन’ ककें निचा परोस रहल छी । हुनक नाम सर्वव्यापी(?) भेलाकें कारणे ऐतह गौण रखने छी । प्रवुद्ध पाठक आ दर्शकदीर्घाकें पहिचानक जिम्मेबारी दए रहल छी । इ पुरुष जातिय धङधङतीमें ऐतेक ने चूर भँ गेल छन्हि जे अपन स्टेटस में अनाप–सनाप लिख देने छथि । अपन कुल–जातिगत (?) सूची त सार्वजनिक कएने छथि , स्टेटसमें बेमेल आ विवादास्पद शब्दक अविष्कार केने छथि । जेना ‘मिथिलोक’ रु एकर की अर्थ होएत छहि रु सम्भवतः गुगल सर्च आ डिक्सनरीमें सेहो नहि भेटैहिबला इ शब्द थिक । जौ ‘मिथि’ आ ‘लोक’ के अलग–अलग परिभाषा कएल जाहि त, ‘मिथि’ राजा सँ सम्बन्धित आ ‘लोक’ संसार सँ सम्बन्धित बातक पुष्टि होएत छैक । ऐतह इ परिभाषा व्यक्तिगत रुप सँ हमरा असान्दर्भिक बुझमामें आयल अछि । ओना लेखककें अपने विशिट परिभाषा अई विषय पर भँ सकैत अछि , से जानबाक लेल ब्याकुल छि । हमरा बिचार सँ
‘मिथिलाक लोक’ होमाक चाहीं । एकैहटा जातिय वर्चस्प बला ‘साहित्यिक’ जमघट आब हिनका ‘रंगीन’ देखबामें आबि रहल छन्हि । लेखकके मनमस्तिष्कमें जकडल धुर जातियताके कारण ओ ‘रंगअंधता’ कें सिकार भेलाकें पुष्टि होएत छैक । स्टेटसमें लिखल ‘नाचगान–नाटक–आर्केस्टा’ त समझमें आएल अछि, मुदा ‘किदन–कहाँदन खूब देखल जाइ छै’ के अर्थ अनर्थ मात्र नहि ‘सांस्कृतिक– प्रहार’ केन्द्रित सेहो अछि । सरकार, मिथिलामें दशहराकें अवसर पर मैथिली गीतनाद, नटुवा, बजनिया, किर्तनिया, भगैत, लोकगाथा पर आधारित नाच, मुर्तिपुर्जा, ढोलहा, ढोल पिपहीकें श्रवण.....होएत छै, अई मौलिक परम्पराके एकटा जातिय ‘संगोष्टि’ के आयोजनकेंं नाम पर ‘किदन–कहाँदन’ कहि देनाई आपत्तिजनक थिक । स्टेटसके बा“की शब्दावलीरवाक्य हनुमानभक्तकें खोजी आ गणेश परिक्रमा सँ सम्बन्धित पुष्टि होएत अछि ।
‘अडहुल’ कें नामसं प्रचारित कार्यक्रममें मैथिलीक विद्वान प्रमेश्वर कापडि जी कें सेहो न्योता भेटल छन्हि । कार्यक्रममें ‘पाग पहिरन अनुष्ठान’ हेमाक बात प्रचारमें आयल अछि । सर्वश्री कापडि जी पाँच वर्ख पहिने लिखने छथि–‘....आई किछु लोक कत्तह कहाँ के छोती कुर्ता आ बभनौटी पागकेँ मैथिली संस्कृतिक पहचान सङे जोडैके घृष्टता कए रहलाह अछि....(स्रोतः विदेह मैथिली प्रबन्ध–निबन्ध–समालोचना, विदेह–संदेह १०९अंक ५१–१०००, श्रुति प्रकाशन, संस्करण–२०१२,पृ।४४० । आब देखबाक अछि जे ‘पाग पहिरन अनुष्ठान’ मे ओ सहभागी होएत छथि या नहि रु
मिथिलामें ‘अडहुल’ कें चर्चा चलि रहल अछि । अहिमें भारतीय लेखक एवं विद्वान Dr.Mahendra Narayan Ram जी सेहो न्योतल अछि से प्रचारमें आयल छहि । हुनके किताब सं संत कबीर जी कें दोहा एतह परोसबाक मोन भँ गेल – ‘निगुरा बाभन ना भला, सगुरा भला चमार । देवतन ते कुत्ता भला, नित उठ भौंके द्वार।।....काला बाभन गोरा चमार । केभी न संग उतरिये पार ।।.... (स्रोत:भारतीय संस्कृतिमें जातीय–जीव, पृ.९१, शब्द प्रकाशन दिल्ली भारत,संस्करण–२०१७० )
Saturday, 29 September 2018
संविधानको अर्को अनुहार
नेपालको संविधान ०७२ फास्ट ट्र्याकमार्फत जारी गर्न किन हतार गरियो भन्नेमा संविधानविद् दमननाथ ढुंगानाको एउटा विश्लेषण रहेछ । सुशील कोइराला उमेर र बिरामीका कारण यथाशीघ्र संविधान जारी गरी ‘फादर अफ कन्स्टिच्युसन’ बन्न आतुर थिए ।
| Writter :Pradip Giri |
कांग्रेसमा गणतन्त्रको उठान सबैभन्दा पहिला नरहरि आचार्यले गर्नुभयो । यसपछि संविधानसभा र आरक्षणको प्रस्ताव गर्ने मैं थिएँ । प्रस्ताव राख्दा नेताहरू ‘यो प्रस्ताव पारित भए म सभापति बन्छु नि हैन’ भनेर सोध्थे । ‘बन्नहुन्छ, बन्नुहुन्छ– बरु पारित भएन भने कसरी सभापति बन्नुहुन्छ हेरौँला’ भनेपछि नेताले भनेका थिए ‘जे लेख्नु छ लेख्नू’ । यो हो हाम्रा पार्टीको अन्तरकथा, जुन देशको अन्तरकथा पनि हो । संविधानको १७–१८ ठाउँमा सार्वभौमसत्ता लेखिएको छ ।
संविधान जुन भाषामा लेखिनुपथ्र्यो– चुस्त, दुरुस्त छैन र लगभग अपरिवर्तनीय बनाइएको छ । संविधान कसरी लेखिन्छ, विश्वको सबैभन्दा सानो अमेरिकाको संविधान पढे पुग्छ । अब त्यो संविधानको लेखनशैलीसँग तुलना नगरौँ । अमेरिकाका ‘फाउन्डिङ फादर्स’ (थोमस जेफर्सन, बेन्जामिन फ्र्यांकलिन, जोन एडम्स, अलेक्जेन्डर ह्यामिल्टन, जोन जे, जेम्स म्याडिसन र जर्ज वासिंटन ) को त्यो बौद्धिकता हाम्रा नेताबाट आश गर्नु हुन्न । सहानुभूति राख्नुपर्छ । तिनीहरूले जुन सम्पन्नता, मौका र स्रोत पाए हाम्रा नेताले पाएनन् ।
यसैले संविधानको भाषा त संविधानजस्तो भएन भएन, अरू पनि धेरै कमजोरी भए । मैले बिए राजनीति शास्त्रमा पढेको– संविधानको अवशिष्ट अधिकार तल (प्रान्तमा) दिइएको हुन्छ । हाम्रो संविधानमा स्पष्ट लेखिएको छ– सबै अवशिष्ट शक्ति केन्द्रमा रहनेछ ।
कुनै पनि संविधानमा उल्लिखित राजनीतिक प्रणालीका दुई अनुहार हुन्छन् । धारा, उपधारा देखाएर मुलुकमा निष्पक्ष न्यायपालिका हुनेछ लेखिएको हुन्छ । व्यवस्थापिकाले कानुन बनाउनेछ, लेखिएको हुन्छ । सबै नागरिक समान हुनेछन्, भनिएको हुन्छ । अर्को व्यवहार (प्राक्टिस) हुन्छ । लेखिएका कतिपय कुरा भइरहेको व्यवहारभन्दा फरक हुन्छन् । अन्तर कसले ल्याएको हुन्छ ? संविधान त समाज विशेषको प्रेरणाबाट, हब्स/रुसो पढेर, माओ/लेनिन/रोजा पढेर, गान्धी/लोहिया/जयप्रकाश नारायण आदि पढेर तिनका आदर्शका आधारमा बनाइएको हुन्छ ।
तर, समाजमा त जाति प्रथा हुन्छ । जाति प्रथाको आधारमा विभेद, लैंगिक विभेद, दमन हुन्छ । छुवाछुत हुन्छ । ती हरेक समाजमा हुन्छन् । अमेरिकामा पनि काला र गोराको छ । यस्तै मान्छेका पनि दुई अनुहार हुन्छ, देखाउने र वास्तविक अनुहार । अमेरिकामा अहिले पनि थोमस जेफर्सन सबैभन्दा आदर्श र लोकतन्त्रवादी मानिन्छन् ।
हरेकपटक यस्तो किन दोहोरिन्छ ? सत्ताको हस्तान्तरण हुन्छ, राज्यको रूपान्तरण हुन्न । श्री ३ मोहनशमशेरको ठाउँमा श्री ३ मातृका कोइराला आउनुहुन्छ । जनताको छोरोबाट पहिलो प्रधानमन्त्री (मातृका) भएपछि राजाले सोधेछन् ‘मातृका के दिऊँ ?’ जर्नेल पाऊँ सरकार भनेछन् । २००७ सालको क्रान्तिको नायक मातृकालाई जर्नेल बन्न लोभ लाग्यो, मेजर जनरलको उपाधि पाए ।
सेनाको वरीयतामा मेजर जनरल माथि लेफ्टिनेन्ट जनरल हुन्छ, प्रधान सेनापति हुन्छ । उनलाई जनरलको उपाधि दिइएको इतिहासमै लेखिएको छ, तर मेजर जनरल सायद लेखिएको छैन, मलाई किशुनजीले सुनाउनुभएको थियो । एकचोटि विदेशी पाहुना आउँदा मातृकाबाबु जनरलकै पोसाकमा जानुभएछ, लेफ्टिनेन्ट जनरललाई स्यालुट हान्नु भएछ । हाम्रो प्रवृत्ति हो यो । जुनसुकै पराधीन देश स्वाधीन भएपछि शासक आफ्नो माटो, हावापानीअनुरूप बदलिँदैनन् ।
प्रभु देशको प्रभु वर्ग, प्रभु जातिमा परिवर्तित हुन चाहन्छन् । जसबाट शोषित, उत्पीडित छ, त्यस्तै हुन चाहन्छन् । ‘रेसेट अफ अर्थ’मा फ्रान्स मेननले उपनिवेशमा रहेका देश स्वाधीन भएपछि शासकका लुगा लगाउने तरिका, खाने तरिका टेबुलमा बस्ने तरिका कसरी परिवर्तन भयो भनेर विस्तारमा लेखका छन् । अंग्रेजकै शोषणमा परेकाले ‘इफ यु डोन्ट माइन्ड, सरी, थ्याङ्क्यु’ भन्न सिके, गोराको शासनपछि नवगोराको शासन सुरु भयो । हामीकहाँ पनि यही समस्या छ । श्री ३ भइहाल्न परेको छ केपी ओली, प्रचण्ड, शेरबहादुरलाई । बिपी कोइरालालाई पनि थियो ।
कम्युनिस्टचाहिँ अलि फरक बन्लान् भन्ने अनुमान गरेको थिएँ । २००७ सालाको क्रान्तिपछि कांग्रेस नेताको ध्याउन्न राणाकी छोरी बिहे गर्नेमा थियो । कम्युनिस्टले भूमिगतकालमै जनजाति चेली बिहे गरे । अब ब्राह्मणवाद हुन्न भन्या त, झन् चर्को ब्राह्मणवादी भएर निस्के । मधेसी नेतालाई पनि पहाडे मूलकै बिहे गर्न पर्या छ । शोषित/उत्पीडित वर्गको नेतालाई माथिल्लो वा शोषक वर्गमा बिहे गर्नपर्ने भएको छ । शोषित समाजबाट माथि उठ्न परेको छ, शोषक समाजसँग साइनो गाँस्न परेको छ । राजधानीमा घर बनाउन परेको छ, काठमाडौंमै नातागोता विस्तार गर्नपर्ने भएको छ । अनि राजधानीमा एलिट वर्गमा स्तरोन्नति चाहिएको छ ।
राणाकालमा सारा कुरा शक्तिमा केन्द्रित थियो, शक्ति स्वविवेकमा केन्द्रित थियो । त्यही कुरा क्रान्तिकारीले सिके । राणाकालमा विद्वान् थिए कुलचन्द्र गौतम । वनारसबाट पढेर फर्किएपछि उनका बुबाले श्री ३ महाराजको प्रश्नमा ठाडो उत्तर नदिनू भनेका रहेछन् । त्यो वेला पढेर आएपछि जागिरका लागि महाराजको दर्शनभेट गर्नुपथ्र्यो । महाराजले सोधेछन्– कति पास गरेर आइस् ?
कुलचन्द्रले भनेछन्, ‘प्रभु प्रसन्न हुँदा सारा विद्या बेकार छन्, प्रभु अप्रसन्न हुँदा सारा विद्या बेकार छन् ।’ राणाकालमा जुन प्रभु अप्रसन्न हुँदा सारा विद्या बेकार हुन्थे, अहिलेसम्म हामी वहन गरिरहेकै छौँ । राणाकालमा जसरी नियुक्ति, बढुवा र खोसुवा हुन्थ्यो– अस्तिसम्म देख्यौँ । लोकसेवा पास नभएका मान्छे मुख्यसचिव भए, अख्तियार प्रमुख भए । के गल्ती गरे हामीले थाहै नपाई अख्तियार प्रमुख बनाउने कांग्रेस–एमाले उनलाई बर्खास्त गर्न कुदे ।
देशमा पजनी प्रथा लोकसेवा आयोगका बाबजुद चलिरहेको छ । सरिता परियारको एउटा लेख पढेको थिएँ– राणाशासकले समातेपछि टंकप्रसाद आचार्यले अरू जेसुकै भए पनि मेरो जात नजाओस् भने रे । त्यत्रो क्रान्तिकारी नेता, बाउनको जात जाला भन्ने पिर रहेछ– जात जाला भन्ने पिर, माथिल्लो जातिमा उक्लिने अभिलाषा ।
यो फेरि काठमाडौं वा जनकपुरमा मात्र भएको होइन । क्रान्तिपछि नेता कसरी बिग्रिन्छन् भन्नेमा जर्ज अरवेलको एउटा किताब छ । कसरी व्यवस्था परिवर्तन हुन्छ, नेतृत्वले पुराना शासक हटाउँछ, नयाँ शासक जन्मिन्छन् र कसरी तन्त्र फेरिन्छ भनेर । अहिलेको व्यवस्था लोकतन्त्रको नाममा अल्पतन्त्र हो । हामी एकतन्त्रबाट अल्पतन्त्रसम्म बामे सरेका छाैँ, साँचो अर्थमा ।
कम्तीमा दुई–अढाइ सय वर्षदेखि एउटा चक्र चलिरहेको छ । हाम्रो चिन्तनलाई फ्रान्सेली राज्यक्रान्तिले सबैभन्दा प्रभावित गर्यो, फ्रान्सेली राज्यक्रान्तिको बिम्ब र मिथकले बोल्सेभिक क्रान्ति प्रभावित भयो । यो जुन चक्र चलिरहेको छ, नेपालमा मात्र केपी ओलीको उदय भएको होइन । सम्राट् नेपोलियनको उदय कसरी भयो ? नेपोलियनको इरादा बडो असल थियो ।
क्रान्तिकारी नेपोलियन, जेनरल नेपोलियन, ट्रिब्युन नेपोलियनले सोचे सबै राजाले यो राजा होइन भनेर मेरो विरोध गरेका छन् । अस्ट्रिया, जर्मनी, स्विडेन, हल्यान्डका सम्राट्ले पिछा गर्या छन् । उनले भनेका छन्– यसकारण राजा हुन विचार गरेँ कि राजतन्त्रसँग सम्झौता चाहन्छु । अब मुलुकको विकास गर्न चाहन्छु । छेउछाउका सम्राट्हरूसँग झगडा गरेर बस्दिनँ । के नेपोलियनलाई विकास गर्ने अधिकार थिएन र ? त्यत्रो अध्ययन, जागरुकता र जनरलको रूपमा खुलापन र लोकतान्त्रिक बिरलै हुन्छन् ।
आफूभन्दा ६ गुणा ठूलो सैनिक शक्तिलाई बम र तोप होइन, सहयोगीको सहारामा हराउने हैसियत राख्थे । सहयोगीसँग उनको व्यवहार अत्यन्त मानवीय थियो । प्रजातन्त्र मासिएर तानाशाही आयो, तानाशाही मासिएर प्रजातन्त्र कायम भयो, गणतन्त्र आयो, फेरि उनकै भतिजो नेपोलियन तृतीय राजा भए । यही चक्र चलिरहेको छ । क्रान्तिको सारसंक्षेप के हो भने क्रान्तिपछि केही मुठीभरले सत्ता कब्जा गर्छन्, क्रान्तिका मर्मज्ञहरू सत्ताको दुश्चक्रबाट बाहिरिन्छन् ।
राजनीति धेरै भावुक र संवेदनशीलले गर्ने होइन । भावुक र संवेदनशील पिसिन्छन् पिसिन्छन् । असल मान्छे राजनीतिमा कस्तो अवस्थामा पुग्छ भन्ने गान्धीजीको अन्तिम दिनका उदासीबाट थाहा हुन्छ । कांग्रेसमा गणेशमानजी र किशुनजीको जुन दुर्दशा भयो, त्यसबाट थाहा पाइन्छ । यसको अर्थ क्रान्तिकारी निराश हुने होइन ।
विकासको पश्चिमा मोडल हाबी छ, भूमण्डलीकरणले गाँज्दै छ । हाम्रा नेता कहिले सिंगापुर बनाउँछाैँ भन्छन्, कहिले स्विट्जरल्यान्ड । कहिले सुपरसोनिक उडाउने कुरा गर्छन्, कहिले चुच्चे रेल गुडाउने । विकासको यो भ्रान्त मोडेलले पनि आज कतिपय समस्या बढाइदिएको छ । उत्पीडनलाई विकासको तथाकथित मोडेलले झन् उचाइमा पुर्याएको छ ।
भेदभावलाई मलजल गरेको छ । लैंगिक असमानतालाई झन् बल पुर्याएको छ । यसबारे उनै फकिर (गान्धीजी) प्रस्ट थिए । उवेलै भनेका थिए– बेलायतजस्तो विकास गर्न सक्दैनौँ, जर्मनीजस्तो विकास गर्न सक्दैनौँ । त्यस्तो विकास गर्न चाहिने फलाम आदि खानी हामीसँग छैन, ऊर्जा हामीसँग छैन । अर्को कुरा, यो मोडेलका लागि श्रम हटाउनुपर्छ, यसका लागि पुँजी चाहिन्छ । त्यो पुँजी हामीसँग छैन । उनले पत्रकारसँग भनेका थिए– भारतलगायत थुप्रै देशको शोषण गरेर बेलायत अहिलेको बेलायत बन्यो ।
भारत बेलायत हुन त भारतजत्रा अरू १० देशको शोषण गरेर पनि पुग्दैन । विडम्बना, अहिले सबै विकासको यही मोडेलप्रति लालायित भइरहेका छन् । केही वर्षअघि आइप्याड किन्न चीनमा युवाले किड्नी बेचेको समाचार पढेको थिएँ । आइप्याड मात्र होइन, माक्र्सको व्याख्याअनुसार उत्पादन प्रणालीकै कुनै मानवीयता हुँदैन–त्यहाँ उत्पादन उत्पादन उत्पादन हुन्छ । त्यही मोडेल थोपरिएको छ । यसले परम्परागत विकृति र उत्पीडनलाई झन् बढाएको छ । यसैले विचारधारा र चिन्तनको क्षेत्रमा पनि नयाँ किसिमले सोच्न परेको छ ।
अहिले पनि गणतन्त्रका नाममा, लोकतन्त्रका नाममा ‘डोमिनेन्ट क्लास’ले ‘क्रियटिव क्लास’उपर शासन गरिरहेको छ । नेतृत्वका दुईथरी परिभाषा छन् । एउटा जनशील नेतृत्व, जहाँ तपाईं प्रतिभा देखाएर, बुद्धि देखाएर, साहित्य लेखेर, बाटो देखाएर महत्व प्राप्त गर्नुहुन्छ । अर्को जहाँ चार लाठीधारी गार्ड राखेको छ, एनिमल फार्ममा बडे–बडे कुकुर पालेझैँ शारीरिक शक्ति छ, मौद्रिक शक्ति छ । त्यही बलमा पार्टी सभापति भएको छ, त्यस्तै बलमा प्रधानमन्त्री भएको छ ।
प्रधानमन्त्री भएपछि ओलीले आफूलाई भगवान् कृष्णभन्दा ठूलो ठान्न थाल्नुभा छ । भगवान् कृष्ण सबैमा श्रेष्ठ थिए– घोडामा उच्चैश्रवा, हात्तीमा ऐरावत, धनुर्धारीमा राम, पाण्डवमा अर्जुन । प्रतीकात्मक अर्थ के भने कुनै कुरामा कृष्णलाई उछिन्ने छँदै थिएनन् । त्यस्तै नेता ओली भन्ने अवस्थामा देश आइपुगेको छ । यो मनस्थितिसँग लड्ने दायित्व बुद्धिजीवी वर्गको हो । तिनले भन्नुपर्छ– हामी डोमिनेन्ट क्लास मान्दैनाैँ, क्रियटिव क्लास मान्छौँ ।
नश्लवाद बडा खतरनाक छ । कांग्रेस पार्टीले भन्यो– अधिनायकवाद आउँछ, अधिनायकवाद आउँछ । प्रस्तुति विश्वसनीय थिएन । अधिनायकवाद त अधिनायकवाद तर कस्तो अधिनायकवाद ? अब महेन्द्रले कु गरेजस्तो अधिनायकवाद आउँदैन । सैनिक कब्जा गरेर आउँदैन, हत्या गरेर पनि आउँदैन । तैपनि अधिनायकवाद आउँछ । अमेरिका, बेलायतमा किताब लेखिँदै छ, अधिनायकवाद कसरी आउँछ ? पुँजीवादी विश्वमा साना/मझौला अर्थतन्त्रभन्दा ठूला बहुराष्ट्रिय कम्पनी छन् । तिनको धनबलबाट जनशक्ति, न्यायालय प्रभावित पारेर अधिनायकवाद आउँछ ।
यस्तो अधिनायकवादको बलियो आधार हो, नश्लवाद । हिटलरले यहुदी शत्रु भनिदिए, सबैलाई तर्साइदिए । शासकले शत्रु घोषणा गरिदिएपछि राष्ट्र एक हुन्छ । भारतमा नरेन्द्र मोदीको लोकप्रियता घट्दो छ, पार्टीभित्र र बाहिर पनि । चुनाव हार्न सक्छन् । तर, पाकिस्तानमाथि हमला बोलिदिए भने जित्छन् भनिँदै छ । जब एउटा समुदायलाई घृणा गरिन्छ, घृणा गर्नेले राजनीतिक लाभ लिन्छ । यो विश्वका अनेक ठाउँमा देखिएको छ । ट्रम्पको कहानी पनि यही हो । आप्रवासीले खाए भनेको छ, भारतीयले खाइदिए भनेको छ, पाकिस्तानीले खाइदिए भनेको छ ।
मधेसलाई यसैगरी नश्लवादी राष्ट्रवादले तारो बनाएको छ । यो कुरा मैले कुनै बौद्धिक विश्लेषणका आधारमा भनिरहेको छैन, मेरा अनुभूतिका आधारमा भनिरहेको छु, कुरा सुनेका आधारमा भनेको छु । गान्धीजीको उनैले गुरुदेव उपाधि दिएका रवीन्द्रनाथ टैगोरसँग पत्रमा भनाभन भयो । गान्धीले विदेशी वस्त्र, विदेशी स्कुल बहिष्कार भनेपछि गुरुदेव हामी संकीर्ण त हुन थालेनौँ भनेर प्रश्न गर्छन् । हामी छुद्र बन्न थालेको हो भनेर सोध्छन् । विदेशबाट पनि लिनुपर्छ, आत्मकेन्द्रित भएर हुन्न, दुनिया“ विशाल छ भन्छन् ।
सबैतिरबाट ज्ञान आओस् भन्ने वेदको उदाहरण दिँदै वसुधैव कुटुम्बकम सम्झाउँछन् । गान्धी जवाफ दिन्छन्, ‘मेरो घरमा झ्याल छ, मधुर हावा स्विकार्छु । तातै हावा पनि स्विकार्छु । तर, घरैबाट विस्थापित गर्न खोज्छ भने घर छाड्नेवाला छैन । घर उडाउन दिन्नँ ।’
मलाई सामाजिक विभेदबारे सबैभन्दा पहिले लोहियाजी (राममनोहर) को रचनाले सचेत गरायो । सिरहाको बस्तीपुरमा जन्मेँ, हुर्कें । नेपाली भाषा घरभित्रै सीमित थियो, घरबाहिर निक्लिनासाथ मैथिली वा हिन्दी बोलिन्थ्यो । कहिलेकाहीँ नितान्त रहरमा धोतीकुर्ता लगाउँथेँ, अहिले पनि लगाउँछु । ०२१ सालमा पहिलोचोटि काठमाडौं आउँदा धोती, कुर्ता लगाउनेमाथि के हुन्छ, मैले भोगेको छु । यस्तो चर्को विभेद हुँदो रहेछ थाहा पाएको छु । विभेदको पीडा भोग्नेले बुझेको हुन्छ, म पनि बुझ्छु भन्दिनँ।
अर्कै संस्कारमा रहेकाले बुझ्ने झन् कुरै भएन । हामीले नारी हुनुको पीडा बुझ्छाैँ ? एक दिन संसद्मा मधेस–पहाडको कुरो उठिरहेको थियो । ‘अब त पुग्यो त मधेसीलाई, कति मधेस मधेस भन्नुहुन्छ,’ सांसदले नै भने, ‘उपेन्द्र यादव उपप्रधानमन्त्री बनिसके, अब कति चाहियो ?’ केही महिला सांसद थिए । मैंले एकजनालाई तपार्इंको सबै पीडा तपाईंको श्रीमान्ले बुझ्नुहुन्छ भनेर सोधेँ । बुझ्नुहुन्छ भनेर जवाफ दिनुभयो ।
मासिकस्राव हुँदा पनि केही अप्ठ्यारो हुँदैन भन्दाभन्दै मन्दिरमा जानचाहिँ डर लाग्छ भन्नुभयो । त्यत्रो क्रान्तिकारी महिला, समाज बदल्न भनेर हिँडेकी छन्– एउटा स्वाभाविक प्राकृतिक क्रियामा मन्दिर जान डराउँछिन् । झाँसीकी रानी लक्ष्मी बाईको एक मात्र प्रमाणिक कथा छ । सबैले लेखेका छन्– उनी एकदम सुयोग्य सेनापति थिइन् ।
एउटा लडाइँमा उनको मासिकस्राव हुन्छ । उनी भन्छिन्– अब लडाइँमा जान मिल्दैन । लोग्ने मान्छेले मलाई देखे मलाई पाप लाग्छ । महिलाको पीडा जस्तै संवेदनशील भए पनि, जति नै सहानुभूति राखे पनि पुरुषलाई बुझ्न गाह्रो पर्छ । त्यही भएर गान्धीजी कहिलेकाहीँ पागलजस्तो भएर भन्नुहुन्थ्यो– म महिला भएर हेर्न चाहन्छु, अर्धनारीश्वर भएर हेर्न चाहन्छु ।
मधेसले शासित भएदेखि जुन पीडा भोगेको छ, त्यो शासक जातिले बुझ्दै बुझ्दैन । राज्यबाट त तिरष्कृत छ छ, मधेसबारे यस्तो किताब लेखेको छु भन्नेबाट पनि मधेस तिरष्कृत पाएको छु । विश्लेषण होइन, सूचना मात्र हो । गान्धीको अलि विवादास्पद किताब छ ‘हिन्दू स्वराज’, त्यसमा उनी भन्छन्– अंग्रेजले हामीलाई पराजित गरेका हैनन्, हामी आफैँ पराजित भएका हौँ । हामीभित्रका कमजोरी, रुढिवादी, विभेद, छुवाछुतले पराजित भएका हौँ । अत्याचार गर्नेभन्दा अत्याचार खप्ने ठूलो अपराधी हो । ‘अत्याचारी वही रहते हैं, जहाँ दब्बु रहते हैं’ भनिएको छ ।
मधेसी वा नारीले आफ्नो कमजोरी पनि हेर्न पर्ने हुन्छ । आज यो उमेरमा आइपुग्दा म कहाँनेर गल्ती गरेँ सम्झिन्छु । राजनीतिका साथै सिर्जनात्मक काम गर्नुपर्छ भन्ने बुझेको थिएँ । तर, खालि राजनीति गरेँ, त्यो मेरा लागि राम्रो भएन । हाम्रो पुस्ताले तीन–तीनवटा क्रान्ति गर्यो, गर्व छ । तर, अबचाहिँ राजनीति र सिर्जनात्मक काम समानान्तर रूपमा लानुपर्छ । शक्तिनीति र बौद्धिक क्रान्ति सँगसँगै हुनुपर्छ । राजनीतिक विचारधारा र राजनीतिक मूल्य–मान्यता नभए राजनीतिक आन्दोलन आत्मघाती हुन्छ, अघि बढ्न सक्दैन ।
मधेस आन्दोलनको समस्या के छ भने यो पहिचानको लडाइँ मात्र होइन, भूखण्डको मात्र पनि होइन । मधेसले अधिकारका लागि सिंगो नेपाललाई डोर्याउनुपर्छ । उत्पीडन सबै ठाउँमा छ– चाहे दलित, महिला सबैतिर । महिला, दलित, जनजाति, अन्य उत्पीडितलाई जोडेर एउटा विचारधारा निर्माण गर्नुपर्छ । यसका लागि चाहिने विचारधारा माक्र्समा छैन । समाज बदल्न जरुरी छ, सत्ता मात्र पाएर हुँदैन भन्ने एन्थोनी ग्राम्स्कीले ‘हेजिमोनी’ नगरी समाजमा कुनै क्रान्ति हुँदैन भनेका छन् ।
गान्धीको जीवन अद्भूत थियो । राजनीतिक क्रान्ति सकिनासाथ रचनात्मक कार्यको क्रान्ति सुरु गरे । कहिले खादी त कहिले ग्रामोद्धार भन्थे । लोहियाको सप्तक्रान्ति र जयप्रकाश नारायणको सर्वोदय क्रान्ति बुझाउने काम मधेसको हो । मधेसले राजनीतिक अधिकार लिएर मात्र पुग्दैन– प्रत्यक्ष अनुभव गरिसकेको कुरा हो । मधेस आन्दोलनका मसिहा सत्तामा पुगे, सत्तामा पुगेपछि तिनका चालढाल देख्न पाउनु हाम्रो पुस्ताका लागि ठूलो राजनीतिक शिक्षा हो ।
हामीले दुईस्तरमा काम गर्न परेको छ । अधिकारको संघर्ष त छँदै छ । संघर्षको क्रममा राजनीतिक, शैक्षिक र वैचारिक अभियान पनि चलाउनुपर्छ, आत्मनिरीक्षण गर्नुपर्छ । आत्मनिरीक्षण नगरी गल्ती कहाँ भयो थाहा हुँदैन । ‘हात हमारा नहीं उठेगा, हमला चाहे जैसा भी हो,’ सत्याग्रहको नारा थियो, ‘लडते भी रहो, कट्ते भी रहो, कट्ते बाजु भी बहुत हैं, सर भी बहुत हंै ।’ गान्धीजी जहिले पनि भन्थे– अपराधलाई घृणा गर, अपराधीलाई हैन ।
तपाईंलाई बन्दी बनाएर राख्ने मान्छे आफू पनि बन्दी हुन्छ– हरदम डरको बन्दी । भयभीत रहन्छ । मधेसलाई बन्दी बनाउने ताकत कति भयभीत होला भन्ने बुझ्न संविधान काफी छ । ऊ यति भयभीत छ, एकै पेजमा पाँच ठाउँसम्म सार्वभौमसत्ता रहनेछ लेख्छ । एकचोटि लेखे पुग्दैन ? एउटा कथा छ– आइन्स्टाइनको सापेक्षताको सिद्धान्त लोकप्रिय भएको रुसीलाई मन परेन ।
स्टालिन चाहन्थे– द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद भएपछि सापेक्षताको सिद्धान्तको के काम ? सयौँ वैज्ञानिक खटाइए गलत सावित गर्न, सयौँ किताब लेख्न थालियो । आइन्स्टाइनलाई सोधियो, तपाईंको सिद्धान्त गलत साबित गर्न सयौँ किताब लेखिँदै छन् नि । आइस्टाइनले जवाफ दिए– म गलत भएको भए एउटै किताब काफी हुने थियो ।(वीरगन्जमा आयोजित ‘संविधानमा जनताको अवधारणा : बहस र मन्थन’मा व्यक्त विचारबाट सम्पादित)
Sources : ,#NayaPatrika ,२०७५ असोज १२ .
http://www.nayapatrikadaily.com/2018/09/28/99578/
Tuesday, 25 September 2018
मैथिली–भोजपुरी अकादमी में ब्राह्मणवाद
हिन्दी भाषा
मैथिली–भोजपुरी अकादमी ब्राह्मणवाद को पृष्ठपोषक करने वाली संस्था हैं । संस्थाका नाम ‘मैथिली–भोजपुरी’ और काम ‘खास जाति के लोगो को’ प्रोमोसन करना ही रहा है । अकादमी के कलुषित नियत और जातिवादी मानसिकता अब जगजाहेर सी हो चुकी हैं । इस अकादमी प्रति कोई मोह किसी का अब भी बचा हो तो कृपा कर के तत्काल अपने मोह भंग कर लें ।
भारत कें नया“ दिल्ली में क्रियाशिल यह संस्था सिर्फ ब्राह्मणवादी साहित्य, गीत, संगीत, संस्कार, परम्परा और संगोत्री को प्रोमोट करना हैं । मिथिला कें सन्दर्भ में यह ‘मिथिलाञ्चल’, खास तौर पर दरिभंगा महाराज के द्वारा स्थापित मान्यताको बढाबा देना इसके ‘हिडेन थिंक’ अब किसी से छुपा नही हैं ।
अकादमी का सोच रहा हैं कि मैथिली गीत का विकास यात्रा और वर्तमान स्वरुप के बारे में सिर्फ ब्राह्मणवादी ही जानकार हैं । २५ सितम्बर २०१८ आयोजित कार्यक्रम ‘मैथिली गीतक विकास यात्रा एवं वर्तमान स्वरुप(संदर्भ : गायन, रंगमंच आ चलचित्र)’ कार्यक्रम कें आमंत्रित वक्ता से लेकर संचालक तक सभी एक ही जाति ‘ब्राह्मण’ हैं । कार्यक्रम कें आमंत्रित वक्ता द्वय धीरेन्द्र झा ‘प्रेमर्षी और सियाराम झा ‘सरस’, मुख्य अतिथि में दिलीप पाण्डे, अध्यक्षता देवशंकर नवीन, सानिद्ध में नीरज पाठक और संचालन प्रकाश झा का हैं । इतना ही नही अकादमी द्वारा किये गए कार्यक्रम (अप्रैल, २००८–२०१३ तक) के सुची देखने पर यह सिर्फ ब्राह्मणवाद का पृष्ठपोषक रहा प्रमाणित होती हैं । संचालन समिति (गवर्निंग–बाँडी) के सदस्यों की सूची में भी उच्च जाति की बाहुल्यता हैं ।
दिल्ली सरकार के वेभसाइट के अनुसार स्थापना का लक्ष्य था(?)–मैथिली व भोजपुरी भाषाओं व साहित्य–संस्कृति का उन्नयन व पल्लवन । परन्त अब यह संस्था किस तरह से कार्य कर ही हैं, सभी को जानकारी ही हैं ।
Sunday, 23 September 2018
नेपाल ड्रयाङ्गनको जालोमा
नेपाली भाषा
एक सर्वेक्षण अनुसार ताजिस्तान, किर्गिस्तान, लाओस, जीबौटी, माल्दिभ्स, मंगोलिया, पाकिस्तान, मोन्टेनेग्रो र श्रीलंकालाई ऋण जालमा चीनले फसाएको छ । ऋणकै कारण श्रीलंको ह्याबान्टोला बन्दरगाह चीनको नियन्त्रणमा पुगेको छ ।
- दिनेश यादव(काठमाडौं)
देशलाई समग्र विकास पथमा डो¥याउन अमुक नेता होइन, नियत र नीतिको आवश्यकता पर्छ । विकास भाषण गरेर आउँदैन, एक्सनमा गएरै यो सम्भव हुन्छ । जन–जनको अभिलाषा र अपेक्षालाई उपेक्षा गर्दै अमूर्त कुराको पछि दौड्नुले देशको विकास किमार्थ हुन सक्तैन । समृद्धि र विकासका लागि ठूल्ठूला सपना बाँड्नु राम्रो भएपनि कसैको ‘भेस्ट इन्ट्रेस्ट’ को पछाडि दौड्नु घातक हुनसक्छ । फेरी एउटा छिमेकीले गरेको ‘कुकर्म’ को बदला लिन अर्कोको ‘नजायज चाहना’ पुरा गर्न उद्दत हुनु पनि अनुचित छ । भूपरिवेश र भूराजनीति नबुझिकनै गरिने कुनैपनि निर्णयले देश राम्रो बनेको उदाहरण विश्वमा कतै भेटिदैन ।
भारतको विदेश नीति पहिले विकासशील मुलुकको अगुवाको रुपमा थियो, अहिले भने अमेरिकी नीतिको ‘पिछलग्गु’ बनेको आरोप त्यहाँका बामपन्थी र विपक्षी दलहरुले लगाईरहेका छन् । चीनलाई घेर्न भारतले अमेरिकालाई साथ दिइरहेको भनाई पनि छ । भारतका कम्युनिष्ट नेता सीताराम येचुरीले हालै एउटा अन्तर्वार्तामा यसको पुष्टि गर्दै भनेका छन, ‘भारतले आफ्नो देशको सैन्य संस्थानहरुको उपयोग गर्न अमेरिकालाई स्वीकृति दिएर उसको पिछलग्गु बनेको छ ।’ यता, भारतसंग चीनको सीमा विवाद त छँदैछ । आफ्नो रणनीतिक र सामरिक हित साध्नमा मात्र केन्द्रित भएरै भारतको सम्बन्ध पछिल्लो समय छिमेकी मुलुकसंग सोचे जस्तो राम्रो छैन । खासगरि नेपाल, पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका र मालदिभ्सलगायत मुलुकको झुकाब अहिले चीनतर्फ बढी छ । यी मुलुकहरुमा बेइजिङको प्रभावशाली भूमिका देखिएको छ । पहिले वेइजिङ दूर थियो अहिले दिल्ली दूर भए जस्तो छ । पछिल्लो समय नेपालीहरुको मक्कामदिना ‘बेइजिङ’ बन्न पुगेको छ । तर, ‘नोर्थ ब्लक’ पनि निरपेक्ष निःस्वार्थी भने छैन । उसको प्रभाव बढ्दै गएको (माथि उल्लेखित ) देशसहित अन्य (जहाँ चीनले लगानी गरेको छ) मा चिनियाँ स्वार्थमाथिको पर्दा अब भने विस्तारै हट्न थालेको छ । नेपाल भने चिनियाँ जालो ‘लोन ट्रयाप’ मा फस्न अग्रसर भईरहेको छ । ऋणको भारी बोकाएर चीनले आफ्नो अनुकूलको कार्य गर्न सफल भएको पुष्टि श्रीलंकाको घटनालाई लिन सकिन्छ । नेपालको सन्दर्भमा पनि त्यस्तै नहोला भन्न सक्ने ठाउँ छैन । हाम्रा दुई छिमेकी शक्तिशाली छन्, एउटा विश्वकै दोस्रो अर्थतन्त्र र अर्को त्यहीँ हाराहारीमा पुग्ने दौडमा रहेको मुलुक हो । शक्तिशाली नेताको अभावमा नेपाल ‘बफर जोन’ को भूमिकामा देखिन थालिसकेको छ, यो एउटा गम्भिर चिन्ताको विषय हो । नेपालले पंचशिलको सिद्धान्त अप्नाउदै राम्रो रसायन र सम–दुरीका आधारमा आफ्नो कुटनीटिलाई अगाडि बढाउन सक्नु पर्छ । सत्ता र कुर्ची बचाउनका लागि गरिने कुटनीतिले अमुक व्यक्तिलाई फाइदा हुन सक्ला तर देशको अहित हुन्छ । त्यसै पनि एउटा भनाई छ, हामीले सबैकुरा परिवर्तन गर्न सक्छौं, छिमेकी फेर्न सक्तैनौं । छिमेकीलाई आफ्नो अनुकूल चाही पक्कै बनाउन सक्छौ । यसका लागि आत्मसमर्पण नै गर्नुपर्छ भन्ने छैन ।
गत जुन (१९–२४) मा प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओलीले १२० सदस्सीय जम्बो प्रतिनिधिमण्डलको नेतृत्व गर्दै ५ दिवसीय चीनको भ्रमण गरे । भ्रमणलाई ‘ऐतिहासिक उपलब्धि’ भनिएपनि केही कुरामा यी ‘राष्ट्रवादी’ चुकेका छन् । भ्रमणमा उठाउन नसकेको प्रमुख मुद्दामा विवादित नेपाल–भारत–चीन ट्राइ जंक्सन ‘लिपुलेक’ पनि हो । लिपुलेक चीन र भारतका साथ नेपालको सीमाको अन्तिम बिन्दू हो । यो नेपाल र तिब्बतबीच प्राचीन व्यापारिक र धार्मिक मार्गका रुपमा प्रयोग हुँदै आएको छ । त्यस्तै, तातोपानी नाका खुलाउने विषय पनि भ्रमणमा प्राथमिकतामा परेन । चीन अब तातोपानी नाका खुलाउनुलाई एउटा अनौपचारिकतामा मात्रै सीमित गर्न खोजेको जस्तो भान पर्न थालिसकेको छ । प्रधानमन्त्रीको पछिल्लो भ्रमणका क्रममा बेल्ट एन्ड रोड इनिसिएटिभ (बिआरआई) परियोजनामाथि पनि कुनै सम्झौता हुन नसक्नु भ्रमणको अर्को दुर्बल पक्ष रहयो ।
सन २०१६ मा पनि ओली प्रधानमन्त्री छँदा नेपाल र चीनबीच ‘ट्रान्जिट एन्ड ट्रान्सफोर्ट’ सम्झौतामा हस्ताक्षर भएकै थियो । भारतमाथिको आर्थिक निर्भरता कम गर्नका लागि गरिएको उक्त सम्झौतालाई कोशेढुंगा भनिएको थियो । तर, यो क्षेत्रमा खासै प्रगति हुन सकेन । चीन एउटै नाका बिन्दूमा मात्र केन्द्रित भएको छ । आफ्नो महत्वाकांक्षी ‘बीआरआई’ मार्फत अघि बढ्न चाहेको अब पुष्टि हुँदै गएको छ । नेपालमा आधारभूत भौतिक संरचना निर्माण र दुई मुलुकबीचको रेलमार्गबाट कनेक्टिभीटि बढाउँदै भारतलाई पनि ‘बीआरआई’ मा सहभागी गराउन चीनले दबाब नीति अवलम्बन गरेको छ । त्यही अनुरुप नेपाल र चीनले एउटा रेल संजालको निर्माणसहित सम्झौताहरुमा जुन २२ मा हस्ताक्षर गरेको विश्लेषकहरुको बुझाई छ । सम्झौतालाई नेपालका लागि कोशेढुंगा भनि धेरैले प्रतिक्रिया पनि दिए । अझ रेल सम्पर्कले नेपाल र तिब्बतलाई जोड्ने दाबी गरियो । नेपालको व्यापार र पारवहनलाई थप सुदृढ गर्न यसले सहयोग गर्ने भनियो । सरकार र सरकारी पक्षले मुक्तकण्ठले यसको प्रशंसा गरे । तर, सबै भन्दा पुरानो सीमा नाका तातोपानी सन २०१५ गएको भुकम्पयता बन्द रहेको र यसलाई खुलाउनेबारे न चीनले न त नेपालले कुनै आधिकारिक प्रतिक्रिया जनाएको छ । बरु चीन तातोपानी नाकाको साटो रसुवागढी–केरुङ नाकालाई उपयोग गर्र्ने ‘माइन्ड सेट’ बनाइसकेको देखिन्छ । तर त्यहा पुग्ने सडक खासै राम्रा छैनन, भौतिक संरचना पनि कमजोरै छ । यति हुँदाहुँदै पनि बेइजिङ यही नाकामा ‘फोकस’ किन भएको हो ? चीनले यो मार्गलाई दक्षिण एशियाकै प्रवेश द्वारका रुपमा विकसित गर्न चाहेको पुष्टि हुन्छ । ऊ यसैलाई अन्तर्राष्ट्रिय मार्ग बनाउने चाहनाका साथ अघि बढेको छ । त्यस्तै, नेपालमा भौतिक संरचना, कनेक्टिभीटि, व्यापार र लगानी बढाउनका लागि चीन तयार रहेको देखिन्छ । तर यो परियोजनाको विपक्षमा भारत रहेको छ । नेपाललाई यो लागु नगर्न दबाब समेत उसले जारी राखेको छ । यस्तो अवस्थामा सुझबुझका साथ अघि बढ्नुको विकल्प छैन ।
अर्को कुरो, चीनले रेल परियोजनामा नेपाललाई ऋण सहयोग गर्ने बताएको छ । यसले श्रीलंका र पाकिस्तान झै नेपाललाई कर्जाको जालमा फसाउन चाहेको त हैन भन्ने शंका धेरै नेपालीको मनमा उब्जिएको छ । यो स्वभाविकै पनि हो । नेपालमा रेल परियोजनामा लगानीबारे भ्रमणका क्रममा ठोस कुरो केही पनि बाहिर आएको छैन । यसले पनि शंकालाई पुष्टि गर्न बल मिल्छ । सन २०१६ मा नेपाल र चीनबीच हिमालय क्षेत्रमा रेलवे नेटवर्क बनाउने सहमति भएको थियो, योसंगै सम्बन्धित ‘एमओई’मा हस्ताक्षर पनि भएको थियो । तर, झण्डै दुई वर्षसम्म चीनले यसबारे खाँसै चासो देखाएको पाइएन । चीनसंग भएको उक्त समझदारीलाई ‘अस्पष्ट’ दस्ताबेज भनि धेरैले प्रतिक्रिया दिएका थिए । समझदारी अनुसार रेल परियोजनाका व्यवहारिकताबारे अध्ययनका लागि चिनिया टोली नेपाल आएपनि उसले अझैसम्म पनि प्रतिवेदन सार्वजनिक नगरेको बताइएको छ । पहिले नेपाल–भारत सीमास्थित लुम्बिनीसम्मै रेल संजाल विस्तारका लागि सहमति भएको थियो । त्यो सम्झौताबाट चीन पछि हटदै रेल सेवा राजधानी काठमाडौंसम्ममा सीमित भएको छ । भारतले लुम्बनीसम्म चीनको रेलसेवा प्रति आपत्ति जनाएकाले वेइजिङ पछि हटेको विश्लेषकहरु बताउँछन् । त्यस्तै, चीनबाट पेट्रोलियम पदार्थ आयात गर्नेबारे विगतमा पटक–पटक वार्ताहरु भएपनि यसमा खासै प्रगति हुन सकेको छैन । अझ रोचक त के छ भने नेपालको दक्षिणी सीमा नाका ‘ब्लकेड’ गरिएका बेला उत्तरबाट ल्याइएका तेल आजसम्म पनि विक्री हुन सकेको छैन ।
एक सर्वेक्षण अनुसार ताजिस्तान, किर्गिस्तान, लाओस, जीबौटी, माल्दिभ्स, मंगोलिया, पाकिस्तान, मोन्टेनेग्रो र श्रीलंकालाई ऋण जालमा चीनले फसाएको छ । ऋणकै कारण श्रीलंको ह्याबान्टोला बन्दरगाह चीनको नियन्त्रणमा पुगेको छ । यो परियोजनामा चिनिया लगानी भएकाले ऋण तिर्न नसकेपछि उक्त बन्दरगाहको उपयोग गर्न चीनलाई ७० प्रतिशत ‘इक्विटी’ अधिकार दिन श्रीलंका बाध्य भयो । बंगलादेशमा ८ अर्ब डलरको ठूलो ऋणको बोझ चीनले बोकाएको छ । चीनले पाकिस्तानमा ५५ अर्ब डलर रकम फरक फरक परियोजनाहरुमा खर्च गरिरहेको छ । ग्वादर पोर्ट परियोजनाबारे पाकिस्तान र चीनबीचको सम्झौता अझै सार्वजनिक हुन सकेको छैन । ग्वादरमा लगानीको साझेदारी र त्यहा नियन्त्रणलाई लिएर ४० वर्षे सम्झौता भएको छ । चीनको यसको राजश्वमाथि ९१ प्रतिशत अधिकार हुनेछ । सन २०१७ को अन्त्यसम्म म्यान्मारमा विदेशी ऋण ९ दशमलव ६ अर्ब डलर थियो, जसमा ४० प्रतिशत चिनिया ऋण नै थियो । त्यहाँका अधिकारीहरुले चीनको यो हरकतलाई राम्रो रुपमा लिएको छैन । ‘फाइनेन्सियल टाइम्स’को एक रिपोर्ट अनुसार मलेसियाले चीन समर्थित चार वटा परियोनाहरु (२३ अर्ब डलर) हालै रद्द गरेको छ । चीन यी परियोजना मार्फत मलेसियाको पूर्वी तटिय रेल लिंकलाई दक्षिणी थाईल्याण्ड र क्वालाम्पुरलाई जोड्ने योजना थियो । यो संगै दुई पाइपलाइन परियोजना थियो , जसमा चीनको ८५प्रतिशत रकम लगानी थियो । नेपालमा पनि रेल परियोजनाको बजेट यति धेरै हुनेछ कि नेपालले समझदारीलाई अगाडि बढाउन सक्तैन र अन्ततः चिनिया“ ऋणको बोझ बोक्नुपर्ने हुन सक्छ । चीनका साथ नेपालले २ दशमलव ४ अर्ब डलर बराबरको आठ वटा महत्वपूर्ण सम्झौता गरेको छ ।
नेपालमा अग्ला–अग्ला पहाड भएर बनाईने भनिएको रेल मार्ग सोचे जस्तो सजिलो छैन । फेरी यसबारे तत्कालै विस्तृत जानकारी पनि सार्वजनिक भएका छैनन् , यो रेल परियोजनाको लागत, कहिलेसम्म पुरा हुने, चीनले यसमा कसरी लगानी गर्ने, चिनिया कम्पनीले ऋणमा व्याज कति लिने लगायतका कुरामा कुनै स्पष्टता अझै सम्म सार्वजनिक भएको छैन । त्यस्तै, चीनले नेपालमा प्राकृतिक ग्यास र पेट्रोलियम उत्पादनहरुको खोज गर्ने विषय समेत सहमतिमा परेको छ । तर नेपालमा प्राकृतिक ग्यास या कच्चा पेट्रोलियम भण्डार हालसम्म कतै फेला परेको संकेत पाइएको छैन । यो ‘हाइपोथेटिकल प्रोजेक्ट’ मा चीनले आफ्नो लगानी गर्न चाहनुलाई अर्थपूर्ण रुपमा लिइएको छ । चीनले विभिन्न मुलुकलाई ऋण जालमा फसाएर आफ्नो ‘इन्ट्रेस्ट’ मा काम गर्ने चाहना राखेको पुष्टि भइसकेको छ । खासगरि नेपालमा चीनसंगको रेलवे परियोजनाका लागि उठाइने ऋणको भुक्तानी नेपालले कहिले पनि गर्न सक्ने अवस्था छैन । यस्ता परियोजनाहरुको लागत नेपालको वार्षिक पूंजीगत खर्च भन्दा निक्कै बढी हुने हुने भएकाले चुक्ताको सम्भावना न्युन रहेको हो । त्यस्तै, नेपालमा रहेको नीतिगत झन्डट अर्को जटिलता हो । नेपालले जग्गा अधिग्रहण, रेलमार्गमै पर्ने भनिएको लाङटाङ राष्ट्रिय निकुञ्जमा वातावरणीय प्रभाव मूल्यांकन पक्षमा सहयोग गर्ने लिखित बचन नै दिइसकेको भएपनि तत्कालै यो संभव जस्तो देखिदैन ।
(युवा डट कमको जुलाई अंकमा प्रकासित आलेख ) २०१८०७१४
Saturday, 22 September 2018
करको बोझ
नेपाली भाषा
- दिनेश यादव (DINESH YADAV)
करबारे चर्चा परिचर्चा जारी छ । पक्ष र विपक्षमा यसबारे आ–आफ्नो तर्क राख्नेहरु बढेकै छन् । सरकारले कर उठाउने तर दुरुपयोग गर्ने गरेको आरोप त आमजनको छदैछ । पछिल्लो समय हा“स–कुखुरादेखि खोलामा माछा मार्दा–तर्दासम्ममा कर लगाउने घोषणाले जनतालाई आक्रोशित र निराशा तुल्याएको छ । सिंहदरबार घरदैलामा त आयो तर ढाड सेक्ने गरि कर प्रणाली ल्यायो भन्ने प्रतिक्रिया धेरैको छ ।
फ्रान्सेली राजा लुईस(चौधौं) का अर्थमन्त्री बापतिस्ते कोलबर्टले कर असुल गर्ने कलाको तुलना हा“सको आबाज र त्यसको अधिकतम प्वा“ख निकाल्नेसंग गरेका थिए । हल्ला कम प्वा“ख बढी निकाल्नु पर्नेमा नेपालमा उल्टो भइरहेको छ । हल्ला बढी गरिएको छ । खासगरि करका का लागि जुन तरिकाले तीनवटै तह (संघ, प्रदेश र स्थानीय तह) प्रस्तुत भएका छन्, त्यो दुर्भाग्यपूर्ण छ । धेरैले यसलाई संघियता तुहाउने कुटिल ‘रणनीति’ भनेका छन । तर मधेस जनविद्रोहका कारण नेपालमा लागु भएको संघियतालाई अब निस्तेज गरेर अघि बढ्न सक्ने अवस्था छैन । संघियता देशका लागि बोझ हुनै सक्तैन । केन्द्रिकृत सत्ताले जनतालाई आफ्नै सरकारको प्रत्याभूति दिलाउन नसकेपछि संघियता आएको हो । नेपालको संदर्भमा संघियता भित्र विकृति र विसंगतिहरु देखिएका छन्, तर त्यसैलाई आधार मानेर गलत भन्नु कुतर्क मात्रै हो । सच्चाउन सक्ने ठाउ“हरु धेरै छन । परिमार्जित र परिष्कृत गर्दै अघि बढे संघियता जनताकै हितमा हुने विषयमा कसैको दुई मत हुनै सक्तैन ।राज्यद्वारा संस्थागत रुपमा कर लगाउनु वा उठाउनु स्वभाविकै प्रक्रिया हो । किनभने कुनैपनि सरकार चलाउनका लागि करलाई आधारभूत आवश्यकताको रुपमा लिइन्छ । तर, त्यही कर जब जनतामाथि बोझ बन्ने गरि आउँछ, तब विरोध र विद्रोह स्वभाविक बन्न पुग्छ । राज्य संचालकहरुले करको दुरुपयोग गर्ने गरेकाले जनताले त्यसलाई बोझका रुपमा लिने गरेका हुन । त्यसैले त्यसको विरोध भइरहेको हो । सामाजशास्त्रीहरुले करदाता र कर लगाउने दुवैलाई कठिनाई नहुने गरि लगाइएको कर प्रणालीलाई आदर्श मान्छन् । अझ प्राचीन ऋषिहरुले कर–संकलनलाई मौरीद्वारा फूलको रस संकलन गर्ने प्रक्रियासंग तुलना गरेका छन । मौरीले मह संकलन गर्ने क्रममा फुललाई कुनै हानी पुर्याउदैन । सरकारले कर तोक्दा यो शैली अंगिकार गर्न सक्नु पर्छ । जनताको अरुचिकर हुने विषयमा निर्णय गर्दा धेरै पटक सोचेर मात्र निर्णय गर्नु पर्छ ।
एडम स्थिमले ‘ दि वेल्थ अफ नेसन्स’ मा लेखेका छन्, ‘देशमा सुरक्षा र असल शासन भएमा सबैभन्दा बढी फाइदा जनतालाई हुन्छ, त्यसैले तिनीहरुले राज्यलाई कर तिर्नुपर्छ ।’ एडमले करमाथि सर्त राखि दिएका छन् : असल शासन र सुरक्षा । तर नेपालमा न सुरक्षाको प्रत्याभूति गर्न सकिएको छ न असल शासनको अनुभूति जनताले गर्न सकिरहेका छन् ।
सरकारको मुख्य आम्दानीको स्रोत भनेकै कर हो । उसले गर्ने खर्च यसैबाट पुर्ति गरिन्छ । मुलुकको प्रगतिका लागि कर असुल्न आवश्यक छ । भनिन्छ जुन देशका जनताले जति बढी कर तिर्छन, देशले त्यतिनै छिटो प्रगति गर्छ । करबाटै बाटो, शिक्षा, रक्षा र अन्य पूर्वाधारको निर्माण हुन्छ । तर हाम्र्र्रो मुलुकमा करको दुरुपयोग खुबै हुने गरेको छ । बाटो घाटोको अवस्था बेहाल छ । शिक्षा र अन्य क्षेत्र पनि लथालिंग छ । सत्ता टिकाउनदेखि सरकारमा बसेकाहरुले उपयोग गर्ने सुविधाका कारण कर प्रति नकारात्मक धारणा आम मानिसमा रहेको पाइन्छ । किनभने यी सबै करसंगै सम्बन्धित छन् । करबाट यी सबै गतिविधि हुने गरेका छन् । फेरी,कुनै पनि अर्थव्यवस्थालाई ठूलो बनाउन करको भूमिका महत्वपूर्ण भएपनि नेपालमा पछिल्लो समय शुरु गरिएको कर प्र्रणालीले जन–जनमा राज्यप्रति नै वितृष्णा फैलाउने काम गरेको छ । यसलाई समयमै निराकरण गर्न नसकिए स्थिति थप जटिल र भयावह हुन सक्छ ।
एडम स्थिमले ‘ दि वेल्थ अफ नेसन्स’ मा लेखेका छन्, ‘देशमा सुरक्षा र असल शासन भएमा सबैभन्दा बढी फाइदा जनतालाई हुन्छ, त्यसैले तिनीहरुले राज्यलाई कर तिर्नुपर्छ ।’ एडमले करमाथि सर्त राखि दिएका छन् : असल शासन र सुरक्षा । तर नेपालमा न सुरक्षाको प्रत्याभूति गर्न सकिएको छ न असल शासनको अनुभूति जनताले गर्न सकिरहेका छन् । प्रचण्ड बहुमतको यो सरकार मात्र सपना बाँडन र भाषणबाजीमा बढी उद्दत देखिएको छ । यसले न देश बन्छ न त जनताको चाहना अनुरुपको विकास हुन्छ । राज्यले कर उठाउने कुरा सामान्य प्रक्रिया भएपनि जनता किन यसको विरोधमा उत्रेका छन, यो कुरो चाही सत्तामा बसेकाहरुले बुझ्नै पर्छ । तीन वटै तहले आ–आफ्नै तरिकाले कर निर्धारण गर्न सक्ने भएपनि किन त्यसको चर्को विरोध भइरहेको हो, यो कुरो पनि सत्ताधारीले खोतल्नै पर्छ । करकै नाममा जग हँसाई चाही हुनु हुँदैन ।
विज्ञहरुले राम्रो कर प्रणालीका लागि मापदण्डहरु तय गरिदिएका छन् । आफूलाई अनुकूल हुने मापदण्डको पालना गर्न सक्नु पर्छ । कर प्रणाली लागू गर्दा सकेसम्म विवादलाई न्युन गर्दै अघि बढ्न उपर्युक्त हुन्छ । आम्दानीको अनुपात या भुक्तानी गर्ने क्षमता, मनोमानीको साटो निश्चित कर निर्धारण, करदाताहरुका लागि सुविधाजनक तरिकाले कर बुझाउने व्यवस्था र चुस्त प्रशासन र सस्तो कर संकलन प्रक्रिया अप्नाएर सरकार अघि बढ्नु पर्छ । करमा लाभ सिद्धान्तलाई पनि पालना गर्नुपर्छ । कसले भुक्तानी गर्न सक्छ र कसले लाभ लिन सक्छ भन्ने कुरा कर निर्धारणकर्ताले बुझ्नै पर्छ । ‘स्वेच्छिक विनिमय’ मा आधारित कर प्रणाली दीर्घकालिन र टिकाउ हुन सक्छ । करमा जर्बरजस्तीले नकारात्मक प्रभाव पर्न सक्छ । कर किन तिर्ने भन्ने कुराको प्रत्याभूति जनतालाई राज्यले गराउन सक्नै पर्छ । विकास र निर्माणका नाममा कर असुल्ने तर कार्यपालिकामा पुगेकाहरुमा रातोरात विकसित हुने ‘टेन्टाकल्स’ ले जनतालाई डस्ने परिपाटी लाजमर्दो, दुखद र घृणित छ ।
कर स्वचालित रुपमा निर्धारण गर्नु पर्छ । यस्तो अवस्थामा करदाताले आफूले प्राप्त गरेको सरकारी सेवाको लाभका लागि अनुपातिक रुपमा भुक्तानी गर्न उत्प्रेरित हुन्छन् । अर्थात जसले सार्वजनिक सेवाहरुबाट बढी भन्दा बढी लाभ लिन्छन, उसले बढी कर चुक्ता गर्नु पर्छ । तर सबैलाई एउटै डयांगको मुला बनाउन खोज्दा समस्या हुन सक्छ । राज्यका गतिविधि विस्तार गर्ने नाममा मनलाग्दो कर तोकिनु बेइमानी हो ।
जनता मूल्य बृद्धिको मारमा पिल्सिएका छन् । कृषकहरु आफ्नो लगानी समेत उठाउन सकेका छैनन् । तर कृषी उपजहरु बजारमा उपभोक्तासम्म पुग्दा विचौलियाका कारण कयौ गुणा महंगो हुने गरेको छ । यसलाई रोक्ने निकाय खै कतै देखिएन । अझ पछिल्लो समय कृषकहरु अब करको मारमा समेत परेका छन् । उता जनताका प्रतिनिधिहरु भने आफू र आफ्नो तलब भत्ता लगायतका अन्य सुविधाहरु बढाउन कुनै कसर बाकी राख्न छाडेका छैनन । आफूखुशी तलब भत्ता बढाएर गरिब जनताले तिरेको करमाथि ब्रह्मलुट मच्चाउन जारी राखेका छन् । यसो त पहिले पनि तिनीहरुले ब्रह्मलुट मच्चाएकै थिए, तर पछिल्लो समय फरक शैलीमा त्यो कर्म कायमै राखेका छन् । यदि जनताकै हितका लागि जनप्रतिनिधिहरुले कार्य गरिरहेका हुन भने सरकारले पूर्व विशिष्ठ पदाधिकारीहरु पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व उपराष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमन्त्री, मन्त्रिपरिषदका अध्यक्ष, प्रतिनिधिसभाका पूर्व सभामुख, राष्ट्रिय सभाका पूर्व अध्यक्ष तथा सर्वोच्च अदालतका पूर्व प्रधानन्यायाधिशहरुलाई पूर्व विशिष्ठ पदाधिकारीको श्रेणीमा किन राखे ? उनीहरु सबैलाई राज्यको कोषबाट आजिवन सुविधा प्रदान गर्नका लागि कानुन बनाएर गरिब नेपालीले तिरेको करमा ब्रह्मलुट किन गरेका हुन ? जनताको करमाथि भार थप्ने कार्यलाई स्वभाविक मान्न सकिन्न । त्यसैपनि राजनीति पेशा होइन सेवा हो । जनताको करमाथि तर मार्ने आधार राजनीतिलाई बनाइनु हुन्न ।
कर स्वचालित रुपमा निर्धारण गर्नु पर्छ । यस्तो अवस्थामा करदाताले आफूले प्राप्त गरेको सरकारी सेवाको लाभका लागि अनुपातिक रुपमा भुक्तानी गर्न उत्प्रेरित हुन्छन् । अर्थात जसले सार्वजनिक सेवाहरुबाट बढी भन्दा बढी लाभ लिन्छन, उसले बढी कर चुक्ता गर्नु पर्छ । तर सबैलाई एउटै डयांगको मुला बनाउन खोज्दा समस्या हुन सक्छ । राज्यका गतिविधि विस्तार गर्ने नाममा मनलाग्दो कर तोकिनु बेइमानी हो । जिताएर पठाएका जनप्रतिनिधिबाट जन–जनले सुविधा चाहेका थिए । सेवा दैलामै आउला भन्ने आशा गरेका थिए । तर पचास गुनासम्म कर बढाउनु जनतालाई प्रत्यक्ष मारमा पार्नु हो । धेरै ठाउँमा राज्यको पहूँच अझै छैन । कतिपय स्थानमा सिटामोल समेत जनताले पाएका छैनन, तर करमाथि कर लगाउनु गलत छ । कर तिर्नेलाई कर लगाउनु पर्छ, तिर्नै नसक्नेलाई करको दायरामा ल्याउन खोज्नु अनुचित छ ।
सिंहदरबारको प्रत्याभूति जनताले गर्न नपाउँदै कर आतंक मच्चाइनु बेठीक हो । फेरी यसको दोष चाहीं संघियतालाई दिन मिल्दैन, हुदैन । करको भारीको दोषारोपण अहिले संघियतामाथि थुपारिएको छ । संघियता मुलुकका लागि महँगो भयो भनेर केहीले प्रचार गर्न थालेका छन् । कर चाही स्थानीय तहले लगाएको छ । खोलामा माछा मार्दादेखि साइकलसम्म कर तिर्नुु पर्ने भएको छ । मुलुकभरिका ७ सय ५३ वटै स्थानीय तहले कुनै न कुनै बहानामा सर्वसाधारणमाथि करको भार थोपरेका छन् । त्यस्तै, इन्टरनेट सेवा सबैभन्दा बढी कर तिर्नुपर्ने सेवा बनाइदै छ । विश्वका अन्य मुलुकमा इन्टरनेट सेवा सस्तो गर्न प्रतिस्पर्धा हुने गर्छ, नेपालमा भने यसमा कर बृद्धिका लागि सरकार उद्दत देखिएको छ ।
सिंहदरबारको प्रत्याभूति जनताले गर्न नपाउँदै कर आतंक मच्चाइनु बेठीक हो । फेरी यसको दोष चाहीं संघियतालाई दिन मिल्दैन, हुदैन ।अन्त्यमा स्थानीय सरकारको कर बृद्धिले जनतालाई अप्ठ्यारो महशुस भएकोले सम्बन्धित निकायले यसमाथि छलफल गरी पुनरावलोकन गर्न सक्नु पर्छ । कर प्रणालीले गरिब किसान तथा मजदुर वर्गलाई भार नपरोस भन्ने कुरा जनप्रतिनिधिहरुले बुझ्न सक्नु पर्छ । कही कतै अस्वभाविक रुपमा कर बृद्धि गरी जनतालाई अप्ठ्यारो महशुस भएको भए त्यसको समाधान गर्न चुक्नु हुदैन । दोहोरो कर प्रणाली अन्त्यको लागि तीनवटै तहका सरकारबीच आपसी समन्वय र समझदारी पनि त्यतिकै जरुरी छ । सरकार र सरकारमा बसेकाहरु मितव्ययी बन्नतिर अग्रसर हुनु पर्छ । मह“गा र चिल्ला गाडीमा मात्रै चढ्ने सोच त्याग्न सक्नु पर्छ । अनावश्यक रुपमा राज्यको ढुकुटीको दुरुपयोग गर्नबाट बच्नु पर्छ । राज्य करबाटै चल्ने भएकाले करका रकम जनतालाई तत्कालै प्रत्याभूति हुने क्षेत्रहरु सडक, यातायात, विद्युत, इन्टरनेट, खानेपानी , सिचाई, शिक्षा, स्वास्थ्यमा लगानी गर्नु समुचित हुनेछ । (युवा डटकमको अगस्ट अंकमा प्रकाशित आलेख) २०७५०५०६
Friday, 21 September 2018
युट्युबका अर्बपति सेलिबे्रटी
‘मानिसले सादा जीवन उच्च विचारलाई अंगीकार गर्नुपर्छ । तर, उपलब्धि हासिल गर्नका लागि आफ्नो ट्यालेन्सीस“गै संघर्षका लागि तयार पनि हुनुपर्छ ।’
- दिनेश यादव (DINESH YADAV)__________________
हामीमध्ये अधिकांश मानिस फेसबुक, युट्युबलगायतका सामाजिक सञ्जालमा दिनभरि घोत्लिएकै हुन्छौ । साथीसंग च्याट गर्न होस वा युट्युबमा रमाईला भिडियोहरू हेर्न नै किन न होस, व्यस्त हुने गर्छौ । समय खेर गएको पत्तो हुदैन । अझ अबेर रात्रीसम्म पनि यसैमा घोरिएका हुन्छौ । यसले समय त बर्बाद हुन्छ नै, व्यक्तिको दैनिकी समेत बिग्रने गर्छ । अब त अमेरिका, युरोप लगायतमा ‘सामाजिक सञ्जाल’ प्रयोगकर्तालाई ‘दुव्र्यसनी’ कै श्रेणीमा राखेर उपचार केन्द्र समेत खोलिएका छन् । तर, २६ वर्षीय ड्यानिएल मिडल्टन एउटा अपवाद भएर निस्केका छन् । अन्य युवाभन्दा फरक शैलीमा सामाजिक सञ्जालको प्रयोग गर्छन् । यसको प्रयोग पैसा कमाउनका लागि गर्छन् । युट्युबमा आफ्ना भिडियोहरू राखेर लोकप्रिय जो बनेका छन् । त्यसैमार्फत आम्दानी पनि गर्छन् ।
बेलायती नागरिक मिडल्टन हाल एक जना युट्युबर, गेमर र सोसल मिडिया सेलिबे्रटीसमेत बनिसकेका छन् । खासगरी यिनी बालबालिका माझ अत्यन्तै लोकप्रिय छन् । ‘ड्यान टीडीएम’ को नामले लोकप्रिय यिनी ‘प्रोफेसनल गेमर’ को परिचयसमेत बनाइसकेका छन् । युट्यब च्यानेल ‘द डायमन्ड मिनेकार्ट’ का मालिक कहलिएका छन् । यिनको च्यानेल खासगरी लोकप्रिय खेल ‘मिनेक्राप्ट’ मा केन्द्रित छ । सन् २०१६ को अगस्टमै यिनको च्यानेलको सब्सक्राइबर्सको संख्या १ करोड २० लाख पुगेको थियो । यो बढ्ने क्रममा छ । हाल ‘दि डायमन्ड मिनेकार्ट’ बेलायतकै सबैभन्दा लोकप्रिय च्यानेलमा सूचीकृत छ । मिडल्टनको आम्दानी चार वर्षअघि साढे २१ लाख रुपैया“सम्म रहेको ‘दि बिजनेस इन्साइडर’ ले अनुमान गरेको थियो । तर, हाल यिनको आम्दानी अर्ब रुपैया“मा पुगिसकेको छ । पछिल्ला वर्षहरूमा उनको च्यानेल भ्युअर्सका आधारमा आधिकारिक रूपमै सबैभन्दा चर्चित हो ।
इंग्ल्यान्डको एल्डरसटमा २६ वर्षअघि जन्मेका मिडल्टन एक जना सेनाका छोरा हुन् । सानै छ“दा उनका आमाबुबाले पारपाचुके गरेका थिए । यो उनका लागि दुखद र संघर्षमय क्षणलाई निम्तो दिने खालको थियो । त्यही बेला उनको हातसमेत भा“च्चिएको थियो । यी मात्रै हैन, ड्यानियले आफ्नो जीवनमा धेरै उतारचढावको सामना गरेका छन् । बुबाको जागिरको प्रकृतिका कारण यिनले विभिन्न ठाउ“हरू परिवर्तन गरिरहनुप¥यो । फलस्वरूप यिनले यथेष्ट मात्रा आत्मीय साथीहरू बनाउन सकेनन् । बाल्यकालमा आमाबुबा दुवैको माया संयुक्त रूपमा पाउन सकेनन् । तर, उनी निराशचाहि“ देखिएनन्, भएनन् । आफ्ना संघर्षको यात्रालाई गजब तरिकाले पूरा गर्दै अघि बढे । उनी सन्तुलित आहारमा सधैं जोड दिन्छन् । जा“डरक्सी र धूमपान कहिले मुखमा नलगाएको उनी बताउ“छन् । भन्छन्, ‘यी वस्तुको सेवन गर्दा म बिरामी पनि हुन सक्छु, फेरि आफ्ना युवा सब्सक्राइबर्सका लागि बिरामी भएर उपस्थिति हुनु राम्रो पनि त हैन नि ।’ अर्थात् यिनी युवाहरूमाझ आफूलाई एउटा रोल मोडलकै रूपमा प्रस्तुत गर्न चाहन्छन् । युवाका लागि मिडल्टनको यो भनाइ अनुसरणीय र प्रेरणाप्रद पक्कै छ ।
ड्यानियलले आफ्नो दिनचर्याबारेको जिज्ञासामा एउटा अन्तर्वार्तामा भनेका छन्, ‘म आफ्नो दिनचर्या अन्यन्तै सरल तरिकाले बिताउ“छु, म धेरै व्यस्ततायुक्त जीवन बिताउन रुचाउ“दिन“ ।’ उनी बिहान ९ बजे उठदा रहेछन् । ओछ्यान छाडेको झन्डै एक घण्टापछि भिडियोका लागि काम थाल्छन् । त्यसैक्रममा ‘मिनेक्राफ्ट’ लाई अपडेट गर्ने, अपराह्नतिर भिडियोहरू सम्पादन गर्ने र बेलुका साढे ८ बजेतिर आफ्नो भिडियो अपलोड गर्ने गरेका छन् । त्यसपछि उनी भिडियोमा आएका प्रतिक्रियाहरू हेर्छन् । ‘दि फेमस पिपल्स’ अनलाइन संस्करणका अनुसार सरल जीवनका बाबजुद ड्यान मिडल्टनको युट्युबमा फ्लोअर्सको संख्या बीबीसीभन्दा बढी छ । सामान्य स्नातक मात्र उत्तीर्ण मिडल्टनले युट्युबमार्फत हासिल गरेको लोकप्रियताले धेरैलाई आश्चर्यमा पारेकै छ । त्यो पनि केही वर्षको अन्तरालमै ।ड्यानियलका बुबा सेनामा काम गर्ने भएकाले उनका परिवार एक स्थानबाट अर्को स्थानमा गई रह“दा उनी मात्र १० वर्षका थिए । बुबाको सरुवाकै कारण कम्तीमा १० वटा विद्यालय परिवर्तन गर्नुपरेको थियो । विद्यालय फेरिरहनुपर्ने कारण हुर्कंदो उमेरमा आफूले बालसखा बनाउन नसकेको उनको गुनासो छ । पछि उनका अभिभावकले आपसमा पारपाचुके गरेपछि पनि विद्यालय परिवर्तन गर्नुपरेको थियो । पछिल्लो विद्यालयमा केही साथी भने बनाउन सफल भए । त्यसैक्रममा उनको भेट जेम्मास“ग भयो । पछि तिनैस“ग उनले विवाह गरे । उनले १७ मार्च २०१३ मा जेम्मालाई आफ्नो घर भिœयाएका हुन् । जेम्मा पनि मिनेक्राप्ट (जेमप्लेजएमसी) मनोरञ्जन गर्थिन् । दुवैले स“गस“गै भिडियो खेलमा रमाएको पनि युट्युबमा हेर्न सकिन्छ ।
प्राराम्भिक शिक्षापछि नोर्थामप्टन विश्वविद्यालयमा आफ्नो नामांकन गराएका थिए । पढाइस“गै उनी युट्युबमा समेत सक्रिय भएका थिए । विश्वविद्यालयका विद्यार्थी छ“दै उनले सञ्चालनमा ल्याएको च्यानेलको नाम ‘पोकम्यानडान एलभी ४५’ थियो । सन् २०१२ मा मिडल्टनले ‘दि डाइमन्ड मिनेकार्ट’ सञ्चालनमा ल्याएका हुन् । यो च्यानललाई उनले व्यावसायिक रूपमै सञ्चालन गरे । डिसेम्बर २०१३ मा उनको च्यानलका सब्सक्राइबर १० लाख नाघे । तथापि ‘ड्यान टीडीएम’ च्यानलको लोकप्रियता थप दुई वर्षमा हवात्तै बढ्यो । सब्सक्राइबर्सको संख्या १ करोड १० लाख नाघ्यो ।
बालबालिकालाई लक्षित खेलहरू यसमा देखाउन थालियो । सैनिक परिवारमा जन्मेका उनी यो च्यानलबाट रातरात लोकप्रिय बन्न पुगे । यति मात्रै हैन, उनले ‘गिनिस वल्र्ड रेकर्ड’ समेत बनाइसकेका छन् । ‘रकेट लिग फर ए टिम अफ २’ र ‘रकेट लिग (टिम अफ थ्री)’ मा सर्वाधिक स्कोर गरेर रेकर्ड बनाएका हुन् । मिडल्टन ‘लेट्स प्ले’ शृंखलाका लागि पनि चर्चित छन् । यो शृंखलाअन्तर्गत उनले दुई हजारभन्दा बढी भिडियो अपलोड गरिसकेका छन् ।
एमटीभीले यसै वर्षको अप्रिलमा सार्वजनिक गरेको सूचीमा उनी करिब २ अर्ब रुपैया“ बराबरको सम्पत्तिका साथ पहिलो स्थानमा रहेका थिए । उनको सम्पतिको स्रोत ग्राफिक नोभेल, एउटा युट्युब रेड सेरिज, ट्युरिङसग विभिन्न एक्टिङ गर्नु नै हो । ‘सेलिब्रेटी नेटवर्थका अनुसार अंग्रेजी गेमर र इन्टरनेट व्यक्तित्व ड्यानियलको कुल सम्पत्ति २ अर्ब २९ करोड ९३ लाख रुपैया“ (२० मिलियन अमेरिकी डलर) रहेको छ । उनका भ्युअर्स १० अर्बभन्दा बढी र सब्सक्राइबर्स १ करोड ६० लाख रहेको सञ्चार माध्यमहरूमा उल्लेख छ । उनले भनेका छन्, ‘मानिसले सादा जीवन उच्च विचारलाई अंगीकार गर्नुपर्छ । तर, उपलब्धि हासिल गर्नका लागि आफ्नो ट्यालेन्सीस“गै संघर्षका लागि तयार पनि हुनुपर्छ ।’ (Article Published on KantipurDaily dated 30 Bhadra 2075)
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Wednesday, 19 September 2018
मिथिला या मधेस प्रदेश ?
मैथिली भाषा
- दिनेश यादव (DINESH YADAV)
| File Photo. |
राज्य सत्ता के संचालक सब मिथिला के ऐतिहासिकता सँ जोडि के ‘मिथिला प्रदेश’ होमाक चाही कहि रहल अछि । ओकरा सब केँ शब्दकोष में अखनो मधेस ‘कतह’ छहि बला बात छैक । हा, राज्य सँ बेर–बेर फाइदा लेनिहार सब सेहो अहि पंक्ति मे ढाड छथि । मिथिला केँ ऐतिहासिकता त अइछे , मुदा अहि भितर बहुत रास बात सब लुकल छहि । ओ सब मधेस शब्द आ पहिचान केँ मटियामेट करबा मेँ लागल छथि । अहि मेँ एहा चाहना लुकल देखबा मेँ आबि रहल अछि जेँ मधेसिया कहियो एकताबद्ध नहि भँ सकैय ?
पुर्व मेची सँ पश्चिम महाकाली धरि तराई–मधेस केँ जोडैवला भाषा हिन्दी अछि(हमर अहि बात केँ आशय मैथिली भाषाक विरोध केनाहि किन्नौह नै अछि) , इ बात नेपालक प्रमुख पार्टी आ राज्यसत्ता के संचालक सब निक जका बुझि रहल छहि । तेँ ओ सब ओकरा निस्तेज आ निस्क्रिय करबा मे मात्र केन्द्रित छहि , ओ सभ मिथिला आ मैथिली के कायापलट होय से सोच मे कहियो नहि रहल आ रहत । इ बात सब केँ बुझले अछि ।
मैथिली, मिथिला आजुक पहिचान नहि, प्राचिन पहिचान आ अन्तर्राष्ट्रिय पहिचान अछि । एकरा कियो मिटा नहि सकैत अछि । मुदा मधेस आ मधेसी के पहिचान मिटेबाक लेल शासनक केन्द्र बिन्दु मेँ रहल दल आ नेता सब सदखनि लागले अछि । मिथिला ऐतिहासिकता सँ जुडल बात थिक । मुदा आजुक युग में ऐतिहासिकता मात्र नामाकरणक पर्याबाची नहि भ सकैत अछि । ‘मधेस’ शब्द ऐतिहासिकता आ सहिद के बलिदान आ शोणित सँ सेहो जुडल छहि । कहबी छहि, विजेता इतिहास लिखैत छहि, मधेसी सब प्रदेश २ के विजेता भेला केँ कारण अपन इतिहास ‘मधेस’ शब्द सँ लिखौत ।
मिथिला ओहूपार छहि, अन्तर्राष्ट्रिय सीमा एकरा बखरा केने छहि, ओमहर दरंभंगा महाराजबला मिथिला छहि, जहि मिथिला में तथाकथित उच्च जाति के लोक सब के देवतुल्य बनाओल गेल छहि, ओकरे संस्कृति, पहिरन आ पहिचान के ओमहरका मिथिला केँ धरोहर केँ रुप मेँ प्रचार कके थोपल जा रहल छहि, अहू पार मेँ सेहा प्रवृति देखल गेल अछि । इ अनुचित अछि । अहिपार जनक आ सीयाजी के मिथिला छहि, तें हमर इ दू विभूति बला मिथिला मेँ अपन पहिचान केँ स्थापित होमाक चाही, दरिभंगा आ मधुबनिया मिथिला केँ अपनेनाई आ पिछलग्गू बननाइ दुर्भाग्य थिक । तहिना मिथिला में जातिबाद देखल गेल अछि , जातिय वर्चस्प सेहो देखल गेल अछि । तेँ ओहोन मिथिला के परिकल्पनाकार लोकन्हि सँ हमर आग्रह जे विगत किछु वर्ष एमहर मिथिला प्रदेश नामाकरण कारबाक प्रवृति मैथिलीजनक आत्मा सब के प्रदुषित कँ देलौ , निक संकेत नहि देखल गेल । अहू कारण सँ मिथिला सँ सुन्दर ‘मधेस प्रदेश’ नामाकरण होय ।
मधेस मेँ मिथिला, भोजपुरा, अवध, मगध सब समाहित आ रुपान्तरित भँ सकैत अछि । मुदा मिथिला मेँ इ बात सब नहि समटल जा सकैत अछि । तें मधेस नाम पर प्रदेश २ के नामाकरण होय, हमर तर्क अछि । मधेस युनिक शब्द थिक, मधेसिया त पहिचान बनिए गेल अछि । विश्व केँ कोनो राज्य आ प्रदेशक नाम एक दोहर सँ मिलल नहि भेटत । भारतीय मिथिला आ नेपालिय मिथिला सँ निक रहत मधेस प्रदेश । इ बड सुहनगर चयन होयत ।
पहिने तराई, तकरबाद मधेस फेर तराई–मधेस आब तँ ऐहो शब्द प्राचिन घटनाक्रम के इतिहास के पन्ना मेँ सीमित भँ गेल बुझमा मेँ आबि रहल अछि । राजनीतिक दल सब ‘मधेस’ शब्द सँ पत्ता नहि किएक सम्बन्ध विच्छेद कँ लेलक ? तें संघिय समाजवादी फोरम आ राष्ट्रिय जनता पार्टी बनल अछि । अहि दुदू मे मधेस नहि छहि । तें कम सँ कम प्रदेश २ के मधेस प्रदेश नामाकरण कँके जनता मे इ दल सब केँ सकारात्मक संदेश दियै पडतैह । तहिना, प्रदेश २ के जिल्ला सब मधेसी केँ कोर जनसंख्या बहुल जिल्ला भेला केँ कारण प्रान्तक नाम मधेस राखब उचित आ उपर्युक्त अछि ।
मिथिला शब्द मेँ क्रान्तिकारिता नहि, इतिहासि छहि । मधेस आ मधेसी शब्द में क्रान्तिकारिता, संघर्ष, त्याग, बलिदानक इतिहास छहि । तेँ प्रदेश २ केँ नाम ‘मधेस’ रखनाहि न्यायसंगत रहतैय । मिथिला राज्य केँ तर्ज पर भेल ५ मैथिलीजन केँ सहादत केँ सम्मान करैत छी, मुदा ओहू सँ बड बेसी गुणा मधेसीजन केँ मधेसक नाम पर बलिदान आ सहादत भेलन्हि, देल गेल । अहू कारण प्रदेशक नाम ‘मधेस’ रखबाक उचित छैक ।
मिथिला मेँ ‘मैथिल’ शब्द(दरभंगिया महाराजक ट्याग बोली) आ किछु जाति विशेषक पहिरन ‘पाग’पर विवाद चलि रहल अछि । मुदा मधेस केँ नाम पर तेहेन विवाद नहि देखल गेल छहि । अविवादित शब्द पर सर्वसम्मति होमाक चाहि । नेपालक दोषर भाषा मैथिली थिक । परन्च ओकर दुरगति आ दुर्भाग्य जगजाहेर अछि । प्रदेश २ ‘मिथिला’ नामाकरण कयलौ केँ बाद इ दुरगति निश्चित, सुनिश्चित देख रहल छी । तेँ इ प्रदेश ‘मधेस प्रदेश’ बनौ । ( १३ भदौ २०७५ मेँ मिथिलाञ्चल एफएम १०५मेगाहर्ज जनकपुर केँ ‘दलान’ कार्यक्रम मेँ देल गेल हमर प्रतिक्रियाके संपादित अंश)
नोट : अहि कार्यक्रम में रमेशरञ्जन झा आ हमर प्रतिक्रिया लेल गेल रहि, हम मधेस नामाकारण के पक्ष मेँ अपन तर्क प्रस्तुत केने रहियै । अठारह श्रोता सबहक सहभागिता रहिन्ह । ओही मेँ एक–एक गोटा श्रोता ‘जनकपुरधाम प्रदेश’ आ ‘मिथिला प्रदेश’ केँ पक्ष मेँ आ बाँकी सोह्र गोटा श्रोता लोकन्हि मधेस प्रदेश केँ पक्षपाति रहन्हि ।
Tuesday, 18 September 2018
नेपाल मे मैथिली गीत/संगीतक अवस्था
मैथिली भाषा
१= उठू यौ मैथिल भेलैय भोर ,
चुनमुन चिरैया करैय शोर,
कोशी कमला अमृत जलधारा,
आलस छोडु कहे भुरुकुवा तारा .....
–विनित ठाकुर
२= हम छी मैथिलबाबु, मेड इन मिथिला...
–डिजे मैथिल
३= चल–चल रे अपन देश,
स्वर्ग स सुन्दर अपन मधेश.....
–कालीचरण वैठा
- दिनेश यादव(DINESH YADAV)
नेपालक मिथिला क्षेत्र गीत÷संगीत मे कतेक धनि अछि, तकर प्रमाण थिकैह यी उपर देल गेल तीन रचना । पहिल गीत मे समग्र मिथिलाबासी के उठबाक आग्रह अछि, दोसर मे पहिचान आ तेसर में अपन भूमि के बखान कयल गेल अछि । कोनो आन भाषा÷भाषी से ई बेजोड सिर्जना कनिको दुबर नए अछि । ऐहन रचना कएनिहार स“ भरल–पुरल अछि नेपालक मिथिला क्षेत्र । गाम–गाम आ जन–जन के बोली एही“ मे समटल गेल अछि । त“ईयो मिथिला कुहरी काट्बाक बाध्य अछि । एकर कारण बहुतो अए, आ भ“ सकैत छैक ।
मिथिला क्षेत्र मे ‘देवराज’ सभहक कमी, ‘दैत्यराज’ आ ‘दानवराज’ सभ बढि गेला के कारण समस्या अछि । ‘भगवती’ नए ‘अग्गती’ सभ बड बेसी भ“ गेल छन्हिन, मिथिला क्षेत्र में । त“ई हरेक क्षेत्र में सम्पन्न रहितौ मिथिला हुक्कहुक्की ल“ रहल अछि । नेपालक मिथिला क्षेत्र मे टक्का के“ लेल बेसी आ मैथिली गीत÷संगीत, साहित्य÷संस्कृति आ कला÷परम्पराक उन्नति आ प्रगतिक लेल कम काज भ“ रहल छैक । आजू मिथिलाक जन–कोकिलकवि विद्यापति किछु खास वर्ग, जाति आ धर्म विशेषक बैन (तन्खाह) कमेबाक माध्यम बनल अछि । बनिहारी सभ एतेक बेसी भ“ गेल अछि जे हुनका सभ के मात्र बैन चाही, आर किछु नए । एहेन गतिविधि नेपालक मिथिला क्षेत्र मे मात्र नए, भारतक मिथिला क्षेत्र मे सेहो ओतबे भेटत ।
एतेह विद्यापति के नाम पर करोड टाकाके“ अक्षयकोष खडा सरकार केने छए, मुद्दा नाताबाद, कृपाबाद, गुटबाद आ जातिबाद के कारण कोष स्थापना काले स“ विवाद मे फसल अछि । त“ई आब विद्यापति के नाम पर घोषणा होमेवाला पुरस्कार÷पदक मे ग्रहण लागल बुझाएत अछि । पुरस्कार प्राप्त कएनिहार सभ के ‘मन–कोत’ भ“ जाए छन्हि, ओ सभ मन स“ पुरस्कार लेबाक अवस्था मे नए थिकैह । मिथिला रत्न, वरिष्ठ गायक एवं संगीतकार गुरुदेव कामत एहीं विषय पर निक प्रतिक्रिया देने छन्छि । ओ कहैथ छन्हि, ‘महाकवि विद्यापति के प्रख्याति आ बेजोड चिनारी गायन÷गायक क्षेत्र स“ भेल रहैए । गायक सभ हुनक गीत गाबी–गाबी के हुनका चर्चा मे अनने रहन्हि । हुनक नाम मे स्थापना भेल पुरस्कार अखनधरि गायक आ संगीतकार के नय, साहित्यकार आ अनुवादक के मात्र भेटलइए । ई दुखद बात थिक ।’ कामत कहैथि छन्हि, ‘पा“च विद्या मे ७ वर्ष स प्रदान कयल जा रहल इ पुरस्कार स्थापना काल स विवाद मे अछि । हम सभ सक्रिय रुप स“ एही क्षेत्र मे वर्षौ स लागल छि , नए भेटल त नया“ पीढी के इ पुरस्कार भेटनाए मुस्किल अए ।’ विद्यापति के नाम भजेनाए असल मिथिलाप्रेमी के आब बन्द करै पडत । कम स कम आबो मिथिला गीत÷संगीत मे दशकों लागत आ सक्रिय लोकन्हि के खोजि होबाक पक्ष मे ओ छथि । वरिष्ठ गायक कामत आगा कहैथि छन्हि जे किछु लोक पोखरी मे जन्मल जलकुम्भी जका बनि बसल अछि । कनिको हावा बहल त एही महार कात स ओही महार कात चलि जाएत अछि । एहा“ दुखद बात अछि । हुनक बात किनको बेजाय लागि सकैत छन्हि । मुदा वास्तम मे मिथिला क्षेत्र मे पाछा स“ पैर(खुट्टा) खिचनिहार सभहक कारण मैथिली गीत÷संगीत के जतेक प्रगति होबाक चाही से नए भ रहल अछि । किछु स्वनामधारी ‘कलाकार’ सभ वर्षौवर्ष अही क्षेत्र मे लागल लोकन्हि सभ के छुत जका व्यवहार क“ रहल छन्हि । एहेन अवस्था मे बहुतो के मन खिन्न होनाए स्वाभाविक छए ।
एतह के मैथिली गीत÷संगीत क्षेत्र मे मुठ्ठीभरी लोकनिक हालीमुहाली छए, ओ सभ के गरिब, दरिद्र आ कलुषित एवं संकिर्ण मानसिकताक कारण ‘कार्टेलिङ’ के स्थिति देखबा मे आबि गेल अछि । एक–दोसर के सम्मान त दुरक बात, पुछोताछो होनाए बर्जित जका भ गेल छैक । युवा पीढि सभ फेसनक लेल अहीं क्षेत्र के प्रवेश क“ रहल अछि , व्यवसायिक दिस किनको चिन्ता नए । सभ के सभ मैथिली भाषाक नाम पर अपन–अपन खेति मे लागल अछि । त“ई कोनो लोकविशेष बेसी काल धरि एही मे टिकबाक हिम्मत नए जुटा पाबि रहल अछि । अपना के ‘सुपरमेसी’ मानएवला लोकन्हि सभ के कारण यी क्षेत्र दिनानुदिन दरिद्र, निसहाय आ मसोमात आ मुहदुब्बरा के श्रेणी मे पहु“चल जा रहल अछि । एक कहबी अछि जे अपन सिर्जना के टक्का स“ तौलबाक प्रयास नए होबाक चाही । मुदा ई बात बुझत के <
दोसर बात, विवादास्पद व्यक्ति सभ स“ नेपालक मैथिली गीत÷संगीत जकरल अछि । त“ई एकर उथान आ प्रगतिक धरातल कमजोर भ“ गेल छैक । एकेटा मनुस जे ‘जेटिए’ पद मे रही सरकारी सेवा क“ रहल छन्हि आ गीतकार, संगीतकार, नाटककार, विज्ञापनकार, गायक, पत्रकार, रेडियोकर्मी, लेखक, विश्लेषक, अधिकारकर्मी, अभियानकर्मी, संस्कृतिकर्मी, राजनीतिकर्मी, भाषाकर्मी, एनजीओकर्मीबनि मिथिलाक के नाम पर बनियागिरी क“ रहल अछि । अहिठाम ई कही दिई जे ओ हुनक बहुआयामिक प्रतिभा भ सकैत छन्हि , मुद्दा हुनक ‘सिन्डीकेट प्रथा’ अहिठाम बर्जित होनाए अति आवश्यक अछि । किएत त हुनक ई ‘दुलर्भ प्रतिभा’ मिथिला के गीत÷संगीत के क्षय दिश उन्मुख क रहल छैक । मिथिला के ऐतिहासिक गौरव गाथा आ प्रतिष्ठा मे आ“च पहु“चा रहल छैक । प्रचार के लेल प्रचार मे जुटल लोक सभ ‘अलकत गगरी छलकत जाय’ से उपर नए उठि सकैति छैन्हि । त“ई आब कम से कम ई बनियागिरीक अन्त्य होमाक चाही । रेडियो मे अपने प्रस्तोता,अपने गायक आ अपने गीत बजोनाए जौ बन्द भ जाए त मिथिला सटसिन आ सुहगनगर रुप से उपर उठि जाएत ।
नेपालक मिथिला क्षेत्र सप्तरी मे जन्मनिहार उदितनारायण झा मैथिली गीत÷संगीत स“ बेसी भारत मे हिन्दी गायक के रुप मे परिचित अछि । सिरहा के मुरलीधर मैथिलीक धरोहर थिकैह, मैथिली गीत÷संगीत मे हुनक योगदान अतुलनीय छैक । मैथिली फिल्म स“ ल“के मिथिला कला÷संस्कृति के जगेर्ना मे हुनक जोडा नए । मुद्दा ओहो मिथिला क्षेत्र मे पिछला समय देखल जा रहल गलत परिपाटी स दुखित छन्हि । किछु वर्ष पहिले काठमाण्डू के एक बेर भेट मे ओ कहने छलाह, ‘अपन माटीपानी के मौलिक पहिचान आ बोली जाधरि मिथिलाकर्मीक जूनुन नए बनत, मैथिली के विकास, प्रर्वधन, उन्नति आ प्रगति असम्भव अए । मिथिला मे नटवरलाल सभ बढि रहल अछि, एकरा रोकबाक दिस पहल जरुरी भ चुकल अछि ।’ एही बेरक विद्यापति पुरस्कारक लेल हुनकर नाम सेहो सिफारिस भेल । मुद्दा जे विद्या मे ओ कहियो काज नए केने रहन्हि ओई के लेल हुनका पुरस्कार देबाक निर्णय भेल । भाषा अनुवादक लेल हुनक नामक चयन कएल गेल । मुद्दा मुरलीधर मात्र एहन मिथिलापुत्र आ योद्धा निकलल जे लाख टका के ओ पुरस्कार प्रदान कएनिहार सभ के विरोध केलन्हि ।
अहिपारक मैथिली गीत÷संगीत मे महत्वपूर्ण योगदान कएनिहार मे गुरुदेव कामत के नाम सबसे उपर अछि । ओ नेपालक शास्त्रिय संगीतक एक धरोहर थिकैह । मिथिला क्षेत्र के दुर दराज गाम मे जन्मि के नेपालक राजधानी मे अखन एक स्थापित कलाकार बनल अछि । बहुतो मिथिलाबासी के ओ अपन शिष्य बना के“ मैथिली गीत÷संगीतक उथ्थान आ प्रगतिके अभियान मे जुट छन्हि । कामत काठमाण्डू मे गुरुकूल संगीत महाविद्यालय खोली बहुतो के संगीत आ गायन क्षेत्र मे अएबाक लेल निपुण बनबति दिक्षित केने अछि । हरेक वर्ष आ हरेक कार्यक्रम मे अपन माय के बोली मैथिली मे ओ गीत गेबेटा करैति छथि । तहिना नेपाली गीत÷संगीत स“ अपना के स्थापित कएनिहार वरिष्ठ गायक रामा मण्डल के मैथिली भाषाक गायन मे बड बेसी योगदान अछि । हुनक हमेसा प्रयास रहैत छैक जे मैथिली गीत÷संगीत आगा बढए, मुद्दा किछु मिथिला अभियान हुनका साथ छुत के व्यवहार करैति छन्हि । आधा दर्जन स बेसी मैथिली सिडी÷एलबम मे हुनक आबाज लोकप्रिय मात्र नए संग्रहणीय छन्हि । उपर उल्लेख कयल गेल लोकन्हि सभ व्यावसायिक रुप स एही क्षेत्र मे लागि अपन मु“हक लेल माड(रोटी) जुटा रहल अछि । अहीं पार मैथिली गीत÷संगीतक श्रीबृद्धि करबा मे गायक हरिशंकर चौधरी, कमल मण्डल, सन्तोष कुमार, अभास लाभक योगदानक चर्चा नय केनाए अन्याय होइत । एही क्षेत्र मे नवप्रवेशी सभ सेहो पंक्तिबद्ध भ टाड अछि । भागवत मण्डल, कैलाश झा, अन्जू यादव, अन्जली पटेल, रञ्जित शर्मा, संजय यादव, अरुण बिजया, तनुजा चौरसिया, वीरेन्द्र झा सनक गायक सभ नेपालक मैथिली गीत÷संगीत क्षेत्र मे बेजोड योगदान क रहल अछि । ओना त धिरेन्द्र आ रुपा सेहो गायन क्षेत्र मे अए, मुद्दा हुनक गायन ‘स्वप्रचार’ अभियानक कारण मात्र चर्चा मे अछि । पुरान लोक होइतो ई दुइ गोटा के गीत÷संगीत घर–घर के नए बनि सकल अछि । हेल्लो मिथिला कार्यक्रम आ हुनक चिनह जानल लोकन्हि के एफएम बाहेक मे हिनका सभहक गीत नहिए के बराबर बजाओल जाएत छैक ।
अही पारक मैथिली गीत÷संगीत के विषय मे चर्चित गीत एवं संगीतकार कमल मण्डल के कहबी अए जे ई क्षेत्र स्थिति सन्तोषजन नए छैक । नवप्रवेशी के प्रोत्साहन कएनिहार लोकन्हि के बड अभाव छैक । गीत÷संगीत के नशा लागल लोक सभ कोनो धरानी एही क्षेत्र मे प्रवेश त करैत छैक मुद्दा बेसी दिन टिक नए पायब रहल अछि । कारण रेडियो÷टेलिभिजनलगायतक के संचार माध्यम मे स्थानीय कलाकार सभ प्रस्तोता के रुप मे रहला स ओ सभ अपन आ चिन्ह्ल लोकन्हि के मात्र स्थान दैति छथि । ओ कहथि छन्हि, ‘मैथिली भाषा क्षेत्र मे धमाधम रेकर्डिङ स्टुडियो सभ खुजि रहल अछि । एकरा सकारात्मक रुपमा ल सकैत छि । अही“ क्षेत्रक भविष्य इजोत अछि ।
नेपालक मिथिला भूमि मे“ मैथिली साहित्यकार, गीतकारक सेहो कमी नए अछि । हुनका सभक योगदान मिथिलाक अनुपम पु“जि कही सकैत छि । कालिकान्त झा ‘तृषित’, विनित ठाकुर, सागरवीर कडारी, अर्जून गुप्ता, डिजे मैथिल,जेएन झा, कालीचरण वैठा सभ के मैथिली गीत रचनामे अतुलनीय योगदान रहलैए आ अइछे । हिनका सभहक गीत में जन–जन के जिभक आबाज सुनल जाएत छैक । ओना त मैथिली गीतकार मे आन लोक सेहो छैथि । ओही मे प्रमुख नाम राजेन्द्र विमल, अशोक दत्त, सुनिल मल्लिक आ धिरेन्द्र प्रेमर्षी के ल“ सकैत छि । मुद्दा ओ सभ मैथिली भाषी के लेल कम सरकारी आ गैरसरकारी संस्था के लेल बड बेसी गीत लिखैत छन्हि । ‘पैसा फेकु आ तमासा देखु’ बला भूमिका मे अही मे स“ किछु गोटा के ल सकैत छि । अही म स एकटा मान्यवर मिथिला क्षेत्र मे रही के नेपाली भाषा÷साहित्यक मे योगदान करबाक लेल लाख टका के पुरस्कार सेहो ग्रहण क चुलक अछि । रेडियो मे हिनका सभहक पकड भेला के कारण हुन सभक बजाओल जायत अछि मुद्दा मैथिलीजन के मन स“ गुनगुनाय के कोटी मे नए रहैत छैक ।
युवा गीतकार विनित ठाकुर मिथिला क्षेत्रक एक संभावनायुक्त आ प्रतिभाशाली हस्ताक्षर अए । हुनक गीत सभ ‘इभर ग्रीन’ आ मन के झक्झोरै बाला कोटी मे रहैत छन्हि । हुनक कहब अछि जे नव–नव गायक सभ के इन्ट्री के बाबजूदो नेपाल मे मैथिली गीत÷संगीतक अवस्था सन्तोषजनक नए छैक । किएक त बिना प्रशिक्षण के ओ सभ अहीं क्षेत्र मे प्रवेश कर रहल छन्हि । विचौलिया सभ स नवप्रवेशी तंग भरहल अछि, कम पाई मे एलबम आ गीत÷संगीत उपलब्ध करा देब कही के ठगि सेहो भ रहल छैक । त“ई नव शब्द आ गीतक विन्यास मे कमजोरी भेला के कारण अश्लिल सब्द सभ सेहो पसरल जा रहल अछि । मैथिली गीत÷संगीतक मौलिक टेस्ट आ फ्लेभर मे हिन्दी, भोजपुरी आ अंग्रेजी भाषा के प्रभाव सेहो बहुत बढी गेल छैक । त“ई मैथिली गीत÷संगीत संक्रमण अवस्था मे छैक ।
ठाकुर आगा कहैथि छन्नि, ‘उपर उठेबाक लेल मिडिया के महत्वपूर्ण हात होयत छैक । मुद्दा मिडिया मे मैथिली के नाम पर किछु गलत व्यक्ति के पहु“च भेला स“ समस्या मे पडल अछि । व्यक्तिबादी सोच हाबी भेला के कारण अपने गीत÷संगीत के प्रचार मे किछु मनुस लागल रहैत छैक । एफएम और केन्द्रिय रेडियो मे काज कएनिहार सभ ‘हमही सबा सेर छी, अउर सभ किछु नए’ तेहेन अभियान मे छथि । केन्द्रक ई रोग नेपालक तराई–मधेस मे संचालन भ“ रहल रेडियो सभ मे से हो पैसरी गेल अछि, देखल जा रहल अछि । अधिकांश स्थानीय एफएम रेडियो म“े ओतएह के गायक सभ प्रस्तोता भेला के कारण अपन गीत÷संगीत बाहेक दोसर के बजेनाए मुनासिब नए मानैत छैक ।’ एक मुखी हैकम के कारण मैथिली गीत÷संगीत के विकास मे समस्या छैक । त“ई एकरा तोडबाक दिस सबगोटा अग्रसर हउ ।
-विदेह पत्रिकामें ई आलेख प्रकाशित अछि _
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